07 January, 2014

हरदम सुख की चाह, इरादे रविकर गंदे-

बन्दे कर खुद का भला, टिके अगर आनंद |
दूजे का करना तभी, दूजा तो मतिमंद |

दूजा तो मतिमंद, त्वरित आनंद माँगता |
छोड़-छाड़ सद्कर्म, धर्म की परिधि लाँघता |

हरदम सुख की चाह, इरादे रविकर गंदे |
माने नहीं सलाह, भोगवादी ये बन्दे ||

4 comments:

  1. बन्दे कर खुद का भला, टिके अगर आनंद |
    दूजे का करना तभी, ये तो हैं मतिमंद |

    ये तो हैं मतिमंद, त्वरित आनंद माँगते |
    छोड़-छाड़ सद्कर्म, धर्म की परिधि लाँघते |

    हरदम सुख की चाह, इरादे रविकर गंदे |
    माने नहीं सलाह, भोगवादी ये बन्दे ||

    बहुत सुन्दर है सटीक है भाई रविकर जी।

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  2. ये बात तो है ही। प्रभावी। शुभकामनाएं।

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  3. बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...

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