22 February, 2016

राधा सहे विछोह, तड़पती मन की मीरा

रिश्ते की शुष्की बढ़ी, गर्म हो गया रक्त ।
जर्द दर्द दोनों सहें, यद्दपि थे आसक्त ।

यद्दपि थे आसक्त,  जमा जिद-जख्म-जखीरा ।
राधा सहे विछोह, तड़पती मन की मीरा ।

आओ आपा खोय, होय मुखड़े पर मुस्की ।
धरो हाथ पर हाथ, मिटे रिश्ते की शुष्की ||

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