tag:blogger.com,1999:blog-87853353742102906.post163647307246251329..comments2023-10-26T02:48:20.620-07:00Comments on "कुछ कहना है": अवसर पाकर अंगुली पकड़ी "पौंचा" पाते हो-रविकर http://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-87853353742102906.post-48947143900637431902012-12-02T03:47:54.538-08:002012-12-02T03:47:54.538-08:00
एक-घरी रुक के खुद को जो व्यस्त बताते हो,
अनमयस्क...<br /><br />एक-घरी रुक के खुद को जो व्यस्त बताते हो,<br />अनमयस्क से इधर उधर कर समय बिताते हो |<br />अन्य -मनस्क भी ठीक नहीं किया आपने .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-87853353742102906.post-9418691168274871622012-12-02T03:46:34.552-08:002012-12-02T03:46:34.552-08:00 कुंडलियाँ
चाहूँ तुम्हे पुकारना, पर रहती चुपचाप ... कुंडलियाँ <br /> चाहूँ तुम्हे पुकारना, पर रहती चुपचाप |<br /> कैसा अंतर्द्वंद यह, कैसा यह संताप |<br /><br />कैसा अंतर -द्वंद्व यह ,कैसा यह संताप ...सुन्दर रचना है .द्वंद्व दुरुस्त करें .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-87853353742102906.post-76158447672914667502012-11-30T23:12:34.260-08:002012-11-30T23:12:34.260-08:00टिपण्णी स्पेम से निकालो भाई साहब .आदाब .टिपण्णी स्पेम से निकालो भाई साहब .आदाब .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-87853353742102906.post-70532871318389538162012-11-30T23:12:15.674-08:002012-11-30T23:12:15.674-08:00लम्बे-लम्बे इन्तजार से, तन-मन तड़पाते हो |
गोदी ...लम्बे-लम्बे इन्तजार से, तन-मन तड़पाते हो |<br />गोदी में सिर रखकर प्रियतम गीत सुनाते हो |<br /><br />देर से आने की झूठी, सब - गाथा गाते हो,<br />पलकें पोल खोलती फिर भी बात बनाते हो |<br /><br />शब्दों के तुम बड़े खिलाड़ी भाव जमाते हो<br />अवसर पाकर अंगुली पकड़ी "पहुंचा" पाते हो |<br />(पौंचा )<br />प्यासी धरती पर रिमझिम सावन बरसाते हो <br />मन-झुरमुट में हौले से प्रिय फूल खिलाते हो |<br /><br />एक-घरी रुक के खुद को जो व्यस्त बताते हो,<br />अनमयस्क से इधर उधर कर समय बिताते हो |<br /><br /> (अन्यमनस्क )<br /><br />बढ़िया प्रस्तुति है गीतात्मक ,कथा प्रवाह लिए कलकल . virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-87853353742102906.post-56156847254296294172012-11-30T23:11:50.778-08:002012-11-30T23:11:50.778-08:00टिपण्णी स्पेम से निकालो भाई साहब .आदाब .टिपण्णी स्पेम से निकालो भाई साहब .आदाब .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-87853353742102906.post-47305550720338157592012-11-30T23:11:07.675-08:002012-11-30T23:11:07.675-08:00लम्बे-लम्बे इन्तजार से, तन-मन तड़पाते हो |
गोदी ...लम्बे-लम्बे इन्तजार से, तन-मन तड़पाते हो |<br />गोदी में सिर रखकर प्रियतम गीत सुनाते हो |<br /><br />देर से आने की झूठी, सब - गाथा गाते हो,<br />पलकें पोल खोलती फिर भी बात बनाते हो |<br /><br />शब्दों के तुम बड़े खिलाड़ी भाव जमाते हो<br />अवसर पाकर अंगुली पकड़ी "पहुंचा" पाते हो |<br />(पौंचा )<br />प्यासी धरती पर रिमझिम सावन बरसाते हो <br />मन-झुरमुट में हौले से प्रिय फूल खिलाते हो |<br /><br />एक-घरी रुक के खुद को जो व्यस्त बताते हो,<br />अनमयस्क से इधर उधर कर समय बिताते हो |<br /><br /> (अन्यमनस्क )<br /><br />बढ़िया प्रस्तुति है गीतात्मक ,कथा प्रवाह लिए कलकल . virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-87853353742102906.post-64523410369983717422012-11-30T23:10:24.256-08:002012-11-30T23:10:24.256-08:00 चाहूँ तुम्हे पुकारना, पर रहती चुपचाप |
कैसा अंतर... चाहूँ तुम्हे पुकारना, पर रहती चुपचाप |<br /> कैसा अंतर्द्वंद यह, कैसा यह संताप |<br /><br />(अंतर्द्वंद्व )<br />सुन्दर मनोहर भाव और अर्थ छटा .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-87853353742102906.post-86736796899433878962012-11-30T23:08:37.502-08:002012-11-30T23:08:37.502-08:00लम्बे-लम्बे इन्तजार से, तन-मन तड़पाते हो |
गोदी ...लम्बे-लम्बे इन्तजार से, तन-मन तड़पाते हो |<br />गोदी में सिर रखकर प्रियतम गीत सुनाते हो |<br /><br />देर से आने की झूठी, सब - गाथा गाते हो,<br />पलकें पोल खोलती फिर भी बात बनाते हो |<br /><br />शब्दों के तुम बड़े खिलाड़ी भाव जमाते हो<br />अवसर पाकर अंगुली पकड़ी "पहुंचा" पाते हो |<br />(पौंचा )<br />प्यासी धरती पर रिमझिम सावन बरसाते हो <br />मन-झुरमुट में हौले से प्रिय फूल खिलाते हो |<br /><br />एक-घरी रुक के खुद को जो व्यस्त बताते हो,<br />अनमयस्क से इधर उधर कर समय बिताते हो |<br /><br /> (अन्यमनस्क )<br />virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.com