tag:blogger.com,1999:blog-87853353742102906.post3397899790198550571..comments2023-10-26T02:48:20.620-07:00Comments on "कुछ कहना है": क्या गधे को आदमी बनते हुए देखा कभी--रविकर http://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-87853353742102906.post-85341595293770275442012-10-21T06:40:34.832-07:002012-10-21T06:40:34.832-07:00काका हाथरसी की रचना याद आ रही है..
इधर भी गधे हैं...काका हाथरसी की रचना याद आ रही है..<br /><br />इधर भी गधे हैं,उधर भी गधे हैं,<br />जिधर देखता हूं गधे ही गधे हैं।<br /><br />गधे हस रहे हैं, आदमी रो रहा है<br />हिंदोस्तां में ये क्या हो रहा है ।<br /><br />हाहाहहाहा<br />महेन्द्र श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/18051207879771385090noreply@blogger.com