सवैया -
(1)
बाँध बनावत हैं सरकार वहाँ पर मूर्ति हटावत त्यूँ |
बाँध बनावत हैं सरकार वहाँ पर मूर्ति हटावत त्यूँ |
गान्धि सरोवर हिंसक हो मलबा-जल ढेर बहावत क्यूँ |
शंकर नेत्र खुला तिसरा करते धरती पर तांडव ज्यूँ |
धारिणि धारि महाकलिका कर धारण खप्पर मारत यूँ |
(2)
नष्ट हुवा घर-ग्राम कुटी जब क्रोध करे दल बादल देवा |
कष्ट बढ़ा गतिमान नदी करती कलिका किलकार कलेवा |
दूर रहे सरकार जहाँ बस खाय रही कुरसी-कर-मेवा |
हिम्मत से तब फौज डटी इस आफत में करती जन-सेवा ||
बढ़िया कहा आपने
ReplyDeleteविंडो 7 , xp में ही उठायें विंडो 8 का लुफ्त
विंडो 7 को upgrade करने का तरीका
यथास्थिति का साक्षात कराते सवैये ......... कवि ह्रदय हर स्थिति में द्रवित हो उठता है। उसके लिए क्या रासलीला क्या विनाश लीला!
ReplyDeleteलील लिया सब देस सरोवर गांधिपना चिर आफत है।
ReplyDeleteयूज़र वा सर हो समभाव यही उनकी न शराफत है।
मंदिर मूरत देत हटाय यही 'सिक कूलर' चाहत है।
यों गुजरे गिरि जोशि तने गुजरात नमो ठुकरावत है।
सटीक , श्री मन
ReplyDeleteसटीक और सामयिक प्रस्तुति... बधाई...
ReplyDeleteबिल्कुल सही
ReplyDeleteबढिया रचना