रोना कितने भूलते, सोना हुआ हराम ।
गिरते गिरते गिर गए, जो सोने के दाम ।
समझे मन के भाव को, रविकर सत्य सटीक ।
कभी नहीं हैरान हो, ना रिश्तों में हीक ॥
बड़ी चुनौती है यही, सभी चाहते प्यार ।
किन्तु जहाँ देना पड़े, झट करते तकरार ॥
है उदास दासत्व से, सो आवे ना रास |
है निराश मन सिरफिरा, करता त्रास हताश ||
चेतन चेतावनी प्रति, होते नहिं गंभीर |
दिखे *चेतिका चतुर्दिश, जड़ हो जाय शरीर ||
*श्मशान
है निराश मन सिरफिरा, करता त्रास हताश ||
चेतन चेतावनी प्रति, होते नहिं गंभीर |
दिखे *चेतिका चतुर्दिश, जड़ हो जाय शरीर ||
*श्मशान
थाली का बैगन नहीं , बैंगन की ही थाल |
जो बैंगन सा बन रहा, गली उसी की दाल ||
हो गलती का लती जो, खायेगा वह लात |
पछताये कुछ ना मिले, गर समझे ना बात ||
क्या बात है
ReplyDeleteबहुत सुंदर
utam-**
ReplyDeleteवाह श्लेष प्रस्तुत कर दिया भारतीय राजनीति के बैंगनों का ....सबसे बड़ा बैंगन कौन है आज जानते हैं इस मनमोहन को सब .बढ़िया प्रस्तुति .
ReplyDeleteबहुत खूब सर!
ReplyDeleteसादर
थाली का बैंगन नही बैंगन की ही थाल ।
ReplyDeleteक्या कहने । बहुत खूब ।