दुर्जन निश्चर पोच अघ, फेंकें काया नोच ।
विकृतियाँ जब जींस में, कैसे बदले सोच ?
कैसे बदले सोच, नहीं संकोच करे हैं ।
है क़ानूनी लोच, तनिक भी नहीं डरे हैं ।
हिम्मत जुटा जटायु, बजा दे घंटी रविकर ।
करके रावण दहन, मिटा दे दुर्जन निश्चर ।।
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नए वर्ष में शपथ, मरे नहीं मित्र दामिनी-
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मित्र-सेक्स विपरीत गर, रखो अपेक्षित ख्याल- रविकर
विनम्र श्रद्धांजलि
ताड़ो नीयत दुष्ट की, पहचानो पशु-व्याल |
मित्र-सेक्स विपरीत गर, रखो अपेक्षित ख्याल |
रखो अपेक्षित ख्याल, पिता पति पुत्र सरीखे।
बनकर सच्चा मित्र, हिफाजत करना सीखे || एक घरी का स्वार्थ, जिन्दगी नहीं उजाड़ो |
जोखिम चलो बराय, मुसीबत झटपट ताड़ो ||
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इस जटायू के बस का नहीं है घंटी बजाना , ये सूर्पनखा माई के चरणों में भी ढंग से लोट सके तो वही काफी !
ReplyDeleteवर्ष 2013 आपको सपरिवार शुभ एवं मंगलमय हो ।
ReplyDeleteशासन,धन,ऐश्वर्य,बुद्धि मे शुद्ध-भाव फैलावे---विजय राजबली माथुर
नव वर्ष की शुभकामनाएँ !!
ReplyDeleteआपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 05/01/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDelete‘चिन्तन-मनन’ करें हम थोड़ा, देखें कुछ टटोल कर-
ReplyDelete‘क्या खोया,क्या पाया हमने’, बीत गये इस वर्ष में|
बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक अभिव्यक्ति आपको सहपरिवार नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ !शुभकामना देती ”शालिनी”मंगलकारी हो जन जन को .-2013
ReplyDeleteयथार्थ का रूप हैं सभी बंध ...
ReplyDelete२०१३ आपको शुभ हो ... मंगलमय हो ...
सटीक दोहे....
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि
ReplyDeleteताड़ो नीयत दुष्ट की, पहचानो पशु-व्याल |
मित्र-सेक्स विपरीत गर, रखो अपेक्षित ख्याल |
रखो अपेक्षित ख्याल, पिता पति पुत्र सरीखे।
बनकर सच्चा मित्र, हिफाजत करना सीखे ||
एक घरी का स्वार्थ, जिन्दगी नहीं उजाड़ो |
जोखिम चलो बराय, मुसीबत झटपट ताड़ो ||
भावपूर्ण काव्यांजलि में एक सुमन हमा रा भी मिला लो .आभार आपकी ताज़ा टिपण्णी का .
सुन्दर भाव सुन्दर प्रस्तुति , कैसे बदले सोच, नहीं संकोच करे हैं ।
ReplyDeleteहै क़ानूनी लोच, तनिक भी नहीं डरे हैं ।
हिम्मत जुटा जटायु, बजा दे घंटी रविकर ।
करके रावण दहन, मिटा दे दुर्जन निश्चर ।।--- ताड़ो नीयत दुष्ट की, पहचानो पशु-व्याल |
मित्र-सेक्स विपरीत गर, रखो अपेक्षित ख्याल |
रखो अपेक्षित ख्याल, पिता पति पुत्र सरीखे।
बनकर सच्चा मित्र, हिफाजत करना सीखे ||
एक घरी का स्वार्थ, जिन्दगी नहीं उजाड़ो |
जोखिम चलो बराय, मुसीबत झटपट ताड़ो || न्यू पोस्ट KHICHADI
बहुत ही बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
शुक्रिया भाई साहब आपकी सद्य टिपण्णी का आशीष का जिसकी भांजे/भतीजे को बहुत ज़रुरत है .
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