चढ़ा शिखर पर कल कलश, लेकिन आज मलीन।
चमक द्वेष-छल ने लिया, कुछ वर्षों में छीन।।
पनघट पर घटना घटी, मचा भयंकर शोर।
कलस लिए कटि कलसिरी, करे कलह पुरजोर।
नहीं जबरदस्ती सटो, मिले न रविकर चैन।
रहो दूर राजी-खुशी, पथ ताकेंगे नैन।।
हिंसक-पशु से भी बुरा, रविकर कपटी दोस्त।
करे बुद्धि को भ्रष्ट यह, पशु तो नोचे गोश्त।।
हो खुश्बू किरदार में, तब तो होगी नेह।
महकाया क्या इत्र से, रविकर तूने देह।
बगुला निगला गुलगुला, फाँका करता हंस।
कागा-कुल मोती चुगे, हँसे दुशासन-कंस।।
होंठ बड़े शातिर मिले, करे न कुछ परवाह।
चाहे जितना दिल दुखे, किन्तु न भरते आह।।
यह शक्कर की चाशनी, वह चीनी का पाक।
देह-देश के शत्रु दो, रविकर करो हलाक।।
मन की मनमानी खले, रखिये खीँच लगाम ।
हड़बड़ में गड़बड़ करे, पड़ें चुकाने दाम ।।
चुनौतियां देती बना, ज्यादा जिम्मेदार।
जीवन बिन जद्दोजहद, बिना छपा अखबार।।
जब माँ पर करती कटक, वर्तमान बलिदान।
तब भविष्य होता सुखी, होता राष्ट्रोत्थान।।
सदा आत्मघाती हुआ, नैतिकता का पाठ।
शत्रु पढ़ाये सर्वदा, सोलह दूनी आठ।।
करे प्रशंसा मूर्ख जब, खूब बघारे शान।
सुनकर निंदा हो दुखी, तथाकथित विद्वान।।
रविकर तन को दे जला, करे सुमति को भ्रष्ट।
क्रोध-अग्नि को मत दबा, दे बहुतेरे कष्ट।।
बना क्रोध भी पुण्य जब, झपटा गिद्ध जटायु।
मौन साधना, भीष्म का, कौरव की अल्पायु।।
पद पाकर पगला गए, रविकर कई पदस्थ।
पद-प्रहार औषधि सही, उन्हें रखे जो स्वस्थ।।
नित्य वेदना बढ़ रही, करे सटीक उपाय।
पढ़े वेद नाना सतत, होते राम सहाय।।।
खाली घर शैतान का, बैठे-ठाले सोच।
करूँ खाट किसकी खड़ी,लूँ किसका मुँह नोच।।
पढ़ें वेद नाना सतत, सिद्ध करें वे स्वार्थ ।
रविकर पढ़कर वेदना, करे प्राप्त परमार्थ।।
बाँध बहे, बादल फ़टे,चक्रवात तूफान।
धनी पकौड़े खा रहे, खाये जहर किसान।।
ऐसा वन देखा कहाँ, ऐ सावन के सूर।
जहाँ हरेरी की जगह, भगवा हो भरपूर।।
मार्ग कंटकाकीर्ण है, जीर्ण-शीर्ण पद-त्राण।
मिले परम्-पद किस तरह, देते भक्त प्रमाण।।
हुआ इश्क नाकाम तो, कर ले मौज तमाम।
किन्तु मुकम्मल यदि हुआ, रहें चुकाते दाम।।
इश्क मुकम्मल यदि हुआ, हो शर्तिया विवाह।
हुआ इश्क नाकाम तो, अब तक है उत्साह।।
Nice post.
ReplyDeleteBest Shortcuts
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