सार छंद
दया करो हे वीणा पाणी सुन लो विनय हमारी।
सरस-ज्ञान से वंचित हैं हम, हरो मूढ़ता सारी।
महाश्रया मालिनी चंद्रिका वक को हंस बना दो।
उगे हुए कैक्टस अंतर में, सुंदर पद्म खिला दो।।
महाभुजा दिव्यंका विमला, मैले वस्त्र हमारे।
नवल-धवल पट कर प्रदान माँ, ताकि प्राणतन धारे।
देवि ज्ञानमुद्रा त्रिगुणा जय, सुवासिनी की जय हो।
माँ शुभदा शुभदास्तु बोल दो, हमें न किंचित भय हो।।
श्री राम मंदिर के पुनर्निर्माण के साक्षी बने।
विध्वंस का कलिकाल बीता, युग सृजन का सामने।
बलिदान लाखों ने दिया, निज रक्त से सींची धरा-
शत शत नमन हर वीर को, सादर कहा श्रीराम ने।
हरिगीतिका छंद
सौम्या सरस्वति शारदा सुरवंदिता सौदामिनी।
प्रज्ञा प्रदन्या पावकी प्रज्या, सुधामय मालिनी।
वागेश्वरी मेधा श्रवनिका वैष्णवी जय भारती।
आश्वी अनीषा अक्षरा रविकर उतारे आरती।।
दोहे
सावन सा वन-प्रान्त में, क्यों न दिखे उल्लास।
हर-हर बम-बम देवघर, सारा शहर उदास।।
कंधों पर घरबार का, रहे उठाते भार।
आज वायरस ढो रहे, मचता हाहाकार।।
रस्सी जैसी जिंदगी, तने-तने हालात।
एक सिरे पर ख्वाहिशें, दूजे पर औकात ।
होनहार विरवान के, होते चिकने पात।
हो न हार उनकी कभी, देते सबको मात।।
कोरोना योद्धा सतत्, जग को रहे उबार।
हो न हार तो पुष्प से, कर स्वागत सत्कार।।
ट्वेंटी-20 की तरह, निपट रहा यह साल।
लेकिन निपटा भी रहा, रखना अपना ख्याल।।
करें बीस सौ बीस को, हे प्रभु अनइंस्टाल।
इंस्टालिंग फिर से करें, एंटिवायरस डाल।।
अल्कोहल का भी धुला, बदनामी का दाग।
दी समाज ने मान्यता, चल कोरोना भाग।।
कोरोना दहला रहा, नहला रहा *कलाल।
नहले पर दहला पटक, सत्ता करे धमाल।।
रखो देह से देह को, रविकर दो गज दूर।
वरना दो गज भूमि का, पट्टा मिले ज़रूर।।
कोरोना की आ चुकी, नुक्कड़ तक बारात ।
फूफा सा ले मुँह फुला, बन न बुआ बेबात।।
औरत परदे में रहे, कहता था जो मर्द।
मास्क लगाने से उसे, हो जाता सिरदर्द।।
मार्ग बदलने के लिए, यदि लड़की मजबूर |
कुत्ता हो या हो गधा, मारो उसे जरूर।।
जिस लड़की को देखने, जाता वो परिवार।
उसे अकेले देख ली, लड़की माँग-सँवार।।
रोक न पाया एड्स भी, फिसला किये कुलीन।
सद्चरित्र शायद करे, कोविड नाइन्टीन।।
हल्की बातें मत करो, हल्का करो शरीर।
प्राण-पखेरू जब उड़ें, हो न किसी को पीर।।
देह जलेगी शर्तिया, लेकर आधा पेड़।
एक पेड़ तो दे लगा, अब तो हुआ अधेड़।।
कर हल्के तन के लिए, हर हफ्ते उपवास।
मन हल्का करना अगर, कर हरदिन बकवास।।
मंजिल से बेह्तर मिले, यदि कोई भी मोड़।
डालो तुम डेरा वहीं, वहीं नारियल फोड़।।
वास्तु-दोष से मुक्त घर, की पक्की पहचान।
हर कोने हर कक्ष में, हो नेट्वर्क समान ।।
कुंडलियाँ (१)
पहले सा लिखते नहीं, क्यों कविवर अब गीत
प्रेयसी की शादी हुई, गया जमाना बीत।
गया जमाना बीत, विरह के गीत लिखो फिर ।
भरो दर्द ही दर्द, करोगे अब क्या आखिर।
कवि कहता कर क्रोध, बको मत अब गदहे सा।
हुआ उसी से ब्याह, लिखूँ क्या अब पहले सा।।
(२)
माँ कर फेरे तो उगे, शिशु के सिर पर बाल।
पर पत्नी कर फेर के, देती चाँद निकाल।
देती चाँद निकाल, माँद में गरजे बाघिन।
रही रोटियाँ सेक, बेल टकले पर हरदिन।
कह रविकर रिरियाय, हमेशा आँख तरेरे।
दे फेरे में डाल, कहाँ तक माँ कर फेरे।
३)
ताके सोशल-मीडिया, दर्शन-कक्षा श्रेष्ठ ।
शुद्ध-चित्त का आकलन, प्रस्तुत विवरण ठेठ ।
प्रस्तुत विवरण ठेठ, आज की बड़ी जरूरत |
बिन व्यवसायिक लाभ, देश की बदले सूरत |
घटना कहे तुरन्त, सभी से पहले आके |
शिक्षा सत्ता ढोंग, आपदा खेल बता के ||
गीत
१)
धोखे से अरि गालवान में, आकर कर देता जब हमला।
कुछ सैनिक होते शहीद पर, हर भारतीय सैनिक सँभला।
शिवगण भिड़ते समरांगण में, करें चीनियों का मुँह काला।
आक्रांता की कमर तोड़ कर, वहाँ मान-मर्दन कर डाला।
बीस शहादत के कारण फिर, करे कालिका खप्पर धारण।
रौद्ररूप तांडव का नर्तन, खाली हो जाता समरांगण।।
कुंडलियाँ
समरांगण सारा सजा, उद्दत भारतवर्ष।
टले न टाले चीन से, संभावित संघर्ष।
संभावित संघर्ष, चलो अब हो ही जाये।
करता जो घुसपैठ, नर्क उसको पहुँचाये।
सावधान रे चीन, मौत मत बुला अकारण।
यदि जीवन से मोह, छोड़ हट जा #समरांगण।।
१)
उस माटी की सौगंध तुझे, तन गंध बसी जिस माटी की।
नभ वायु खनिज जल पावक की, संस्कारित शुभ परिपाटी की ।।
मिट्टी का माधो कह दुर्जन, सज्जन की हँसी उड़ाते हैं।
मिट्टी डालो उन सब पर जो, मिट्टी में नाम मिलाते हैं।।
चुप रह कर कर्मठ कार्य करें, कायर तो बस चिल्लाते हैं।
कुत्ते मिल सहज भौंकते हैं, हाथी न कभी भय खाते हैं।
गीली मिट्टी का लौंदा बन, मुश्किल है दुनिया में रहना।
छल कपट त्याग रवि रविकर तप, अनुचित बातों को मत सहना।
तुलना सिक्कों पर नही कभी, मिट्टी के मोल बिको प्यारे,
मिट्टी में मिलने से पहले, मिट्टी में शत्रु मिला सारे ।।
२)
रिटायर हो रहे तो क्या, सुबह जल्दी उठा करना।
टहलना भी जरूरी है, तनिक कसरत किया करना।
कमाई जिंदगी भर की, करो कुछ कार्य सामाजिक-
करो निर्माण मानव का, गरीबों पर दया करना।।
न कोई बॉस है तेरा, न कोई मातहत ही है-
बराबर हो गये सारे, परस्पर अब मजा करना।
न छोटे घर बड़े घर का, रहा कोई यहाँ अंतर-
गुजारे के लिए कमरा, कहानी क्या बयां करना।।
मुक्तक
करती रही दुनिया।
मगर काया कफन पाकर परम-संतुष्ट हो जाये।।
फकीरी, बादशाहत क्या, न मेरी है न तेरी है।
तमाचा वक्त का खाकर, तमाशा रुष्ट हो जाये।।
दुखवा कासे कहूँ सखी री, बचपन की है बात।
रहा ताड़ता कॉलेज् में जो, अब डॉक्टर अभिजात।
आँखें लड़ने पर निकली थी, जब-तब जिस की खीस।
मुझे देखने के बदले वह, माँग रहा अब फीस।
झाड़ू लगाने में सदा, आगे बढ़ा जाता बलम।
पोछा करो पीछे खिसक, क्या ये नहीं आता बलम।
क्या काटने से पूर्व भिंडी धो लिया था आपने-
बस एक ही सब्जी पका लो, कौन दो खाता बलम।
रहे मापते रिश्तों की हम, लम्बाई चौड़ाई।
करें क्षेत्रफल की गणना फिर, स्वागत और विदाई।
करना ही है माप-तौल यदि, माप आयतन रविकर-
लम्बाई चौड़ाई से भी, बहुत अहम् गहराई।।
चीनी सामान
मेरे पैसे की गोली से, प्राणान्तक आघात करे।
मेरे पैसे की गोली से, सीमा पर मेरा वीर मरे।
नहीं वीरगति पाया है वह, बल्कि किया मैनें हत्या-
धिक्कार मुझे धिक्कार मुझे, क्यों नहीं मुझे चीनी अखरे।।
दोहा
वेतन पा अधिकार पर, लड़ते सभ्य-असभ्य।
वे तन दे कर देश प्रति, करें पूर्ण कर्तव्य।।
विदाई गीत
विदाई
अलमारियों में पुस्तकें सलवार कुरते छोड़ के।
गुड़िया खिलौने छोड़ के, रोये चुनरियाओढ़ के।
रो के कहारों से कहे रोके रहो डोली यहाँ।
माता पिता भाई बहन को छोड़कर जाये कहाँ।
लख अश्रुपूरित नैन से बारातियों की हड़बड़ी।
लल्ली लगा ली आलता लावा उछाली चल पड़ी।।
हरदम सुरक्षित वह रही सानिध्य में परिवार के।
घूमी अकेले कब कहीं वह वस्त्र गहने धार के।
क्यूँ छोड़ने आई सखी, निष्ठुर हुआ परिवार क्यों।
अन्जान पथ पर भेजते अब छूटता घर बार क्यों।।
रोती गले मिलती रही, ठहरी नही लेकिन घड़ी।
लल्ली लगा ली आलता लावा उछाली चल पड़ी।।
आओ कहारों ले चलो अब अजनबी संसार में।
शायद कमी कुछ रह गयी है बेटियों के प्यार में।
तुलसी नमन केला नमन बटवृक्ष अमराई नमन।
दे दो विदा लेना बुला हो शीघ्र रविकर आगमन।।
आगे बढ़ी फिर याद करती जोड़ती इक इक कड़ी।
लल्ली लगा ली आलता लावा उछाली चल पड़ी।।
अदभुद।
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