पुतली की ज्योति प्रखर, सोया यमुना तीर ।
सत्य-अहिंसा देश हित, अर्पित किया शरीर ।
अर्पित किया शरीर, यशोदा माँ का मोहन ।
कुरुक्षेत्र का युद्ध, करे गीता सा प्रवचन ।
पर यह मोहन कौन, नचाये जिसको सुतली ।
कौन नचावन-हार, बना नाचे कठपुतली ।।
क्या बात है!!
ReplyDeleteपर यह मोहन कौन, नचाये जिसको सुतली ।
ReplyDeleteकौन नचावन-हार, बना नाचे कठपुतली ।।
विष कन्या के हाथ में है भाई इसकी डोर ,
अगला समर करीब है नहीं मिलेगा ठौर .
दोनों मोहन अब कोई नहीं जानता !
ReplyDeletenobody knows and is good if we forget
ReplyDeleteसुंदर !!
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