15 September, 2012

जाए न सरकार, दूर तक बड़ी चलेगी-

बेचेंगे हर हाल में, बचा हुआ सब माल |
अचर सचर
दो साल में, खलें खींच खलु खाल | 

खलें खींच खलु खाल, चाल सी टी दुहराया  |
लेकिन अबकी ढाल, मुलायम ममता माया |

सन चौदह तक होय, तेरही बहुत खलेगी |
जाए न सरकार, दूर तक बड़ी चलेगी ||

लेकिन दर्पण अगर, दिखा दो इसको कोई-

मगन मना मानव मुआ, याद्दाश्त कमजोर |
लप्पड़ थप्पड़ छड़ी अब, चाबुक रहा खखोर |

चाबुक रहा खखोर, बड़ी यह चमड़ी मोटी  |
न कसाब न गुरू, घुटाला हाला घोटी |

लेकिन दर्पण अगर, दिखा दो इसको कोई |
भौंक भौंक मर जाय, लाश पर लज्जा रोई ||


अन्दर लिखते सीन, करें बाहर सब नाटक-

मची हाय-तोबा विकट, सड़कों पर कुहराम |
राम नाम ही सत्य है, करे प्रदर्शन जाम |

करे प्रदर्शन जाम, कहा की है यह ताकत |
ताकत माया बाम, मुलायम ममता झाँकत |

अन्दर लिखते सीन, करें बाहर सब नाटक |
शतक पाप शिशुपाल, नहीं न, गर्दन काटत ||


पैदा खुदरा पूत, आठवां कृष्णा नामा-रविकर

सुवन सातवाँ सिलिंडर, माया लड़की रूप ।
छूट उड़ी आकाश की, वाणी सुन रे भूप ।
वाणी सुन रे भूप, कंस कंगरसिया मामा।
पैदा खुदरा पूत, आठवां कृष्णा नामा ।
लेगा तेरे प्राण, यही वह पुत्र आठवाँ ।
किचेन देवकी जेल, कहे है सुवन सातवाँ ।।

सिली सिलिंडर सनसनी, मेहरबान मक्कार  |
प्रोसेस्ड खाने का करे, अब प्रचार
सरकार |

अब प्रचार
सरकार, पुरातन भोजन भूलो |
पाक कला त्यौहार, भूल कर केक कुबूलो |

फास्ट फूड भरमार, तरीके नए सोचिये |
पाई फुर्सत नारि, सतत अब नहीं कोंचिये ||


गैस सिलिंडर चलेगा पूरे दो महीने : है न उपाय-

 दाने खा लो अंकुरित, पी लो सत्तू घोल ।
पाव पाइए प्रेम से, ब्रेड पैकेट लो मोल ।
ब्रेड पैकेट लो मोल, लंच में माड़-भात खा ।
काटो मस्त सलाद, शाम को मूढ़ी चक्खा । 
चाय बना इक बार, डालिए  हॉट पॉट में ।
फास्ट फूड दो मिनट, पकाओ एक लाट में ।।


आशा है मेहमान की, होना नहीं निराश ।
खिला बताशा दे पिला, पानी बेहद ख़ास ।
पानी बेहद ख़ास, पार्टी उससे मांगो ।
करिए ढाबा विजिट, शाम को बाहर भागो ।
ख़तम होय न गैस, गैस काया में पालो ।
न तलना ना भून, सदा हर चीज उबालो  ।।

मा मू ली   बा पु-रा-जमा, जल डी-जल जंजाल ।
गैस सिलिंडर सातवाँ, छील बाल की खाल ।
छील बाल की खाल, सुबह का हुआ नाश्ता ।
चार चने की दाल, लंच में चले पाश्ता ।
फास्ट फूड ब्रेड जैम,  किचेन माता जी भूली ।
मूली गाजर काट,  बने  मुश्किल  मामूली ।

आग लगे डीजल जले, तले *पकौड़ी पन्त -

चाटुकार *चंडालिनी, चले चाट सामन्त । 
आग लगे डीजल जले, तले *पकौड़ी पन्त ।

तले पकौड़ी पन्त, कीर्ति मँहगाई गाई ।
गैस सिलिन्डर ख़त्म, *कोयले की अधमाई ।

*इडली अल्पाहार, कराये भोजन *जिंदल ।
इटली *पीजा रात, मनाते मोहन मंगल ।।
प्रश्न : तारांकित शब्दों के अर्थ बताएं ।।

बने नहीं पर न्यूज, लाख मारे मँहगाई

बावन शिशु हरदिन मरें, बड़ा भयंकर रोग ।
खाईं में जो बस गिरी, उसमें बासठ लोग ।

उसमें बासठ लोग, नाव गंगा में डूबी ।
दंगे मार हजार, पुलिस नक्सल बाखूबी ।

गिरते कन्या भ्रूण, पड़े अब खूब दिखाई ।
बने नहीं पर न्यूज, लाख मारे मँहगाई ।।

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर है व्यापक है .मारक है व्यवस्था के लिए घातक है .
    ram ram bhai
    रविवार, 16 सितम्बर 2012
    देश मेरा - हो गया अकविता ,
    लो आज हम भी हुए अँगरेज़वा
    http://veerubhai1947.blogspot.com/

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  2. हफ्ते भर बाद लौटा हूं। पूरी ख़ुराक मिली आपके ब्लॉगों पर।

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  3. Virendra Kumar SharmaSeptember 16, 2012 9:06 PM
    कैग नहीं ये कागा है ,जिसके सिर पे बैठ गया ,वो अभागा है

    Dr. shyam gupta ने कहा…
    शर्माजी.... ये जो नेता संसद में बैठे हैं ..कहाँ से आये हैं ..क्या इंद्र ने भेजे हैं संसद में या किसी अन्य लोक के हैं....
    ---- ये सब आपके(आप-हम-जनता जनार्दन) बीच से ही आये हुए हैं... आप ही हैं... आप ने ही अपनी बेगैरती या अकार्यकुशलता, अकर्मण्यता, या लालच से पैसे लेकर भेजे हैं संसद में....अतः ये आप की ही भाषा व कर्म अपनाए हुए हैं....
    --- लोकतंत्र में प्रजा ही राजा होती है...राजा बनाने-चुनने वाली ...यथा राजा तथा प्रजा ..अतः मंत्री जैसे हैं प्रजा का ही दोष है, हमारा दोष है, सबका दोष है, आपकी आचरण-संहिता का दोष है .....
    ---- विरोध नेताओं का कीजिये, आचारण हीनता का कीजिये , आप के बीच जो भ्रष्टता, अनाचारिता पल रही है उसका कीजिये ...देश व उसके प्रतीकों का नहीं ....
    ----नियम से ऊपर कोई नहीं है...
    शनिवार, सितम्बर 15, 2012
    Dr. shyam gupta ने कहा…
    "शासन ने देश को स्वाभिमान विहीन कर दिया है .यह बात व्यक्ति के अपने दर्द की बात है व्यभि चारी मंत्री को उसे माननीय कहना पड़ता है..."

    ---शासन तो प्रजातंत्र में जनता के हाथ में है.. अपने लालच में वह स्वयं स्वाभिमान विहीन है...
    ---औपचारिकतावश कहते समय आप मंत्री नाम के व्यक्ति को माननीय नहीं कहते अपितु मंत्री संस्था को, जो देश का गौरवयुक्त पद है, माननीय कहा जाता है.... इसमें कोई अनुचित बात नहीं है...यह मर्यादा है ...
    ---- ६५ सालों में यह सब नेताओं ने नहीं तोड़ा अपितु आपकी अनंत आकांक्षाओं , पाश्चात्य नक़ल की आकांक्षा ...तेजी से अमीर बनाने की आकांक्षा ...ने व्यक्ति मात्र को तोड़ा-मरोड़ा है ..और ये नेता भी व्यक्ति ही हैं....
    ----यह सब पर उपदेश ..वाली बात है ...




    डॉ .श्याम गुप्त जी किसी बात को हम खींच कर उस सीमा तक नहीं ले जाना चाहते जहां पहुँच कर तर्क भी तर्क न रहे .यह इस व्यवस्था की मजबूरी है कि हमें चुनना पड़ता है .हम निगेटिव वोट तो दे नहीं सकते .सरकार जाति के अन्दर भी उपजाति ,वर्ण ,वर्ग भेद के आधार पर समाज को बाँट कर वोट का अधिकार लेती है .वोट कब्ज़ियाती है .

    क्या जनता वोट न दे ?जिनको ये पद दिए जातें हैं ,उनके पद की गरिमा कहती है वह पद के अनुकूल उठें .अतीत चाहे उनका कैसा भी रहा हो .अचानक से भी आप अध्यापक बन गएँ हैं तो अब अध्यापक के कर्म और दायित्व के अनुरूप उठो .

    गुंडे को भी पगड़ी दी ज़ाती है तो वह उसे पहनने के बाद लोक लाज रखता है .आत्म संकल्प लेता है अब मैं ऐसी हरकत नहीं करूंगा .

    डॉ .श्याम गुप्ता हम आत्म निंदा क्यों करें ?सारा दोष खुद पे क्यों मढ़े? आप कहना चाहते हैं जिन लोगों ने इन नेताओं को चुना है उनके सभी के हाथ काले थे .भाई साहब जब कोयला ही सामने रखा हो तो वह हीरा कैसे बन जाएगा .कोयला ही चुना जाएगा .अब तो चुना हुआ कोयला सोचे उसे हीरा कैसे बनना है .

    इस सिस्टम में तो डाकू भी चुने जातें हैं तब क्या वह सांसद बनने के बाद भी डाका डालते रहें .जिसे बड़ा पद मिल जाता है उसे लोक लाज की मर्यादा रखनी चाहिए .

    इस तरह का तर्क जो आप कर रहें हैं वह कुतर्क होता है जनता को ही दोषी ठहरा रहें हैं .

    यकीन मानिए हम असीम के वकील नहीं है .असीम के पीछे पड़ने की बजाय आप ऐसा काम करो कि आपके द्वारा चुना हुआ व्यक्ति कोयला चोर न बने .
    सजा तो इन रहबरों को होनी चाहिए
    वीरू भाई आपने जो भी लिखा सब सत्य है..यही होरहा है आजकल...

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  4. वाह!
    आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को आज दिनांक 17-09-2012 को ट्रैफिक सिग्नल सी ज़िन्दगी : सोमवारीय चर्चामंच-1005 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ

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