लुटे दामिनी रोज ही, जो चाहे सो लूट ।
लूट लुटेरे फूट लें, पर थानों में फूट ।
इक इक कर अधिकारी खिसके ।
चिंतन शिविर वास्ते किसके ?
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संसाधन नीलाम हों, मनु-मिनरल-फारेस्ट ।
करें विदेशी मस्तियाँ, बन सत्ता के गेस्ट ।
करते पिकनिक चन्दन घिसके ।
चिंतन शिविर वास्ते किसके ?
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लेवी उधर वसूलते, नक्सल के उत्पात ।
पुलिस तंग करती इधर, दोनों करते घात ।
मरती है यूँ पब्लिक पिसके ।
चिंतन शिविर वास्ते किसके ?
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दुर्गम सीमा देश की, रहे कर्मरत फौज ।
शीश शहीदों के कटें, यहाँ मौज ही मौज ।
क्यूँ जाने, घरवाले सिसके ।
चिंतन शिविर वास्ते किसके ? |
विकट बोलबाला दिखे, प्रभु-सम भ्रष्टाचार ।
पुहुप-वास से पातरा, पूजें भक्त अपार ।
भगवन भी हैं बस में जिसके ।
चिंतन शिविर वास्ते किसके ?
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पीढ़ी दर पीढ़ी चले, सीढ़ी चढ़े प्रवीन । आसमान में विचरते, समझें कहाँ जमीन । सारे पद तो पीछे इसके । चिंतन शिविर वास्ते किसके ? |
लाजवाब...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteचिंतन शिविर की अच्छी बखिया उधेडी है आपने !!
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteआपकी यह पोस्ट कल दिनांक 21-01-2013 के चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
दुर्गम सीमा देश की, रहे कर्मरत फौज ।
ReplyDeleteशीश शहीदों के कटें, यहाँ मौज ही मौज ।
क्यूँ जाने, घरवाले सिसके ।
चिंतन शिविर वास्ते किसके ?
खूब निचोड़ के मारा है ,
चिंतन शिविर हमारा है .
Virendra Sharma @Veerubhai1947
ReplyDeleteram ram bhai मुखपृष्ठ रविवार, 20 जनवरी 2013 .फिर इस देश के नौजवानों का क्या होगा ? http://veerubhai1947.blogspot.in/
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लेवी उधर वसूलते, नक्सल के उत्पात ।
ReplyDeleteपुलिस तंग करती इधर, दोनों करते घात ।
मरती है यूँ पब्लिक पिसके ।
चिंतन शिविर वास्ते किसके ?
बहुत सही व सटीक ,,,,
सादर !
लाजवाब...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteमातम मनते हैं इधर, मने उधर हैं जश्न
ReplyDeleteनई विधा मन भा गई,दोहों के सँग प्रश्न ||
Ravikr bhi hai kam nahI*** kare tippdi, likhe tippdi,padhe tippdi, chot kare damdar
ReplyDeleteसरल भाषा में जटिल व्यंग्य । काव्य-रस और शिल्प लाजबाब हैं।
ReplyDeleteसार्थक और उपयोगी रचनाएँ!
ReplyDeletesamayik aur sateek.
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