गाई मँहगाई गई, नई नवेली सोच ।
अलबेली देवी दिखे, पीती रक्त खरोच ।
पीती रक्त खरोच, लगे ईंधन का चस्का ।
करती बंटाधार, मार मंत्री मकु मस्का ।
चढ़े चढ़ावा तेल, पुन: चीनी झल्लाई ।
अब मांगी है जान, नहीं माने मँहगाई ।।
जब धरा पे है बची बंजर जमीं, बीज सरसों का उगा ले हाथ पर |
15 February, 2013
अब मांगी है जान, नहीं माने मँहगाई -
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बहुत सुंदर, क्या कहने
ReplyDeleteमाई माई कर रहे, महगाई रही मार ।
ReplyDeleteरेट बढ़ा पेट्रोल का ,डीजल की भी धार।
डीजल की भी धार ,मार महगाई जाती ।
कैसा ये ब्यापार ,दिनों -दिन टीस बढ़ाती ।
कहते सुन लोकेश ,किराया बढ़ता जाता ।
जब जाओ बाजार ,किराना महंगा आता ।
बढ़िया प्रस्तुति .रोज़ महंगाई के तोहफे ,और भ्रष्टाचार,देख लो सरकार- को ,है बड़ी लाचार .,करे नित टूजी -कोलगेट ,अरे भई! हेलिकोप्टर ,करो भई रविकर पूर्ती .
ReplyDeleteभावपूर्ण काव्य रचना,आभार.
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