26 August, 2013

रविकर पक्का मूर्ख, तभी तो रोटी खोई -

(1)
कोई टी वी बाँटता, कांगरेस धन अन्न |
लैप टॉप बाँटे सपा, हुई भाजपा सन्न |

हुई भाजपा सन्न, उठाये खुद भी झोले |
मुट्ठी दोनों भींच, राम की जय जय बोले -

रविकर पक्का मूर्ख, तभी तो रोटी खोई |
छोड़े टी वी अन्न, कहाँ दुनिया में कोई ||

(2)

घोटा ले ले राल नित, पर पोटा ना जाय |
लोटा क़दमों में मगर, लोटा-थाल बिकाय |

लोटा-थाल बिकाय, हुआ मेरा मन-रेगा |
मिला दबंग प्रधान, दिखा जाता है ठेंगा |

बँटना बंटाधार, लगे ना इस पर ताले |
सड़ा सड़क पर अन्न, महज हो रहे  घुटाले ||

(1)
मरजीना असली मदर, रोम रोम में रोम |
दिल जीतेगी पेट से, दिल्ली से यह व्योम |

दिल्ली से यह व्योम, बरसते काले बादल |
सड़े खुले में अन्न, बटेगा सड़ा हुआ कल |

और मरे ना भूख, टैक्स पेयर है करजी |
मिल जाए बस वोट, यही मरजीना मरजी- 

(२)
जाने मरजीना कहाँ, चली बांटने अन्न |
चालू चालीस चोर के, अच्छे दिन आसन्न |

अच्छे दिन आसन्न, रहा अब तक मन-रेगा |
कई फीसदी लाभ, यही भोजन बिल देगा |

चाहे डूबे देश, चले हम वोट कमाने |
भूखें सोवें लोग, लूटते चोर खजाने ||

1 comment:


  1. गुरुदेव दान न चाइए, चाइए केवल दात ।
    मूठी बधि मुद्रा धारिए , पसारिये ना हाथ /४३९।

    'दान न चाइ चाइए दाता '
    ----- ॥ गरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ॥ -----

    भावार्थ: -- गुरुदेव कहते हैं 'दान नहीं चाहिए दाता चाहिए '।
    इस हाथ की मुद्रा बंद मुट्ठी के रूप में हो न कि पसारा स्वरूप में ॥

    अर्थात -- हमारे देश की सरकार स्वयं तो भिखारी है, और अपने साथ जनता को भी भिखारी बना रही है । देश को भिखारियों की नहीं दाताओं की आवश्यकता है ॥

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