ताटंक छन्द
हरा पेड़ जो रहा खड़ा तो, गरमी हरा नहीं पाई |
गड़ा पड़ा बिजली का खम्भा, बिजली किन्तु कहाँ आई |
चला बवंडर मचा तहलका, रहा बड़ा ही दुखदाई |
उड़ी मढ़ैया रविकर भैया, विपदा साथ खींच लाई ||
गया जेठ तो छोटा भाई, साथ साथ घर आया है |
बहना घर में रहे अकेली, बादल दल भी छाया है |
किया इकट्ठा नरिया-थपुआ, बाँस फाँस सरियाया है |
इसीलिए आपातकाल सा, झटपट छत बनवाया है |
आसमान थाली समान जब, साफ गरीबी ने देखा।
माथे पर फिर खिंची हुई क्यों, हे रविकर चिंता रेखा।
हुई दुपहरी गर्मी भारी, नीचे तनिक उतर आओ।
माना बिजुली नहीं आ रही, पेड़ तले ही सुस्ताओ।।
ना चिड़िया की ची ची सुनते, न कोई पशु ही आया।
लू के तेज थपेड़ों ने तो, पेड़ों को भी तड़पाया।
अम्बिया की चटनी दो रोटी, खाकर थोडा सुस्ताओ।
चार बजे के बाद दुबारा, बचा काम फिर निपटाओ।।
दोहे
जेठ जुल्म करके गया, आगे ठाढ़ असाढ़ |
मानसून आता दिखे, आ जाए ना बाढ़ ||
यूँ ही गर गरमी रमी, थमी नहीं तत्काल |
होंय काल-कवलित कई, हे प्रभु तनिक सँभाल ||
खपरैली छत उड़ गई, गुजर गया तूफान |
चलो बना ले छत पुनः, भूल-भाल नुक्सान ||
छोटी सी यह झोपड़ी, बड़े-बड़े अरमान |
पढ़ें-लिखें बच्चे बढ़ें, हो जीवन आसान ||
छिति-जल-पावक ने किया, खपरा नया तयार |
मगन गगन है देख के, खुश है मंद-बयार ||
खपरे होते एकजुट, करें व्यूह तैयार |
करते दो दो हाथ फिर, क्या मौसम की मार |
हरा पेड़ जो रहा खड़ा तो, गरमी हरा नहीं पाई |
गड़ा पड़ा बिजली का खम्भा, बिजली किन्तु कहाँ आई |
चला बवंडर मचा तहलका, रहा बड़ा ही दुखदाई |
उड़ी मढ़ैया रविकर भैया, विपदा साथ खींच लाई ||
गया जेठ तो छोटा भाई, साथ साथ घर आया है |
बहना घर में रहे अकेली, बादल दल भी छाया है |
किया इकट्ठा नरिया-थपुआ, बाँस फाँस सरियाया है |
इसीलिए आपातकाल सा, झटपट छत बनवाया है |
आसमान थाली समान जब, साफ गरीबी ने देखा।
माथे पर फिर खिंची हुई क्यों, हे रविकर चिंता रेखा।
हुई दुपहरी गर्मी भारी, नीचे तनिक उतर आओ।
माना बिजुली नहीं आ रही, पेड़ तले ही सुस्ताओ।।
ना चिड़िया की ची ची सुनते, न कोई पशु ही आया।
लू के तेज थपेड़ों ने तो, पेड़ों को भी तड़पाया।
अम्बिया की चटनी दो रोटी, खाकर थोडा सुस्ताओ।
चार बजे के बाद दुबारा, बचा काम फिर निपटाओ।।
दोहे
जेठ जुल्म करके गया, आगे ठाढ़ असाढ़ |
मानसून आता दिखे, आ जाए ना बाढ़ ||
यूँ ही गर गरमी रमी, थमी नहीं तत्काल |
होंय काल-कवलित कई, हे प्रभु तनिक सँभाल ||
खपरैली छत उड़ गई, गुजर गया तूफान |
चलो बना ले छत पुनः, भूल-भाल नुक्सान ||
छोटी सी यह झोपड़ी, बड़े-बड़े अरमान |
पढ़ें-लिखें बच्चे बढ़ें, हो जीवन आसान ||
छिति-जल-पावक ने किया, खपरा नया तयार |
मगन गगन है देख के, खुश है मंद-बयार ||
खपरे होते एकजुट, करें व्यूह तैयार |
करते दो दो हाथ फिर, क्या मौसम की मार |
ReplyDeleteखपरैली छत उड़ गई, गुजर गया तूफान |
चलो बना ले छत पुनः, भूल-भाल नुक्सान ||
सच आफत को भी गरीब के घर का ही पता होता हैं ..
लेकिन वह भी हिम्मत कहाँ हारता है ..
बहुत सुन्दर