(1)
विजयदशमी मना मानव, जलाता जो बड़ा रावण।
वही तो वर्ष भर हरदिन जलाता भूमि बिन कारण।
सिया सी देवि को हर के, सियासी दांव चलता है
सदा सच्चा करे सौदा, मगर आफ़त असाधारण।।
(2)
दिया हनुमान को दानव, नहीं संजीवनी लाने।
तभी तो खा रहे शिशु को, सुषेणों के दवाखाने।
कहीं पर बाढ़ का रावण, हजारों जान लीला है।
कहीं पर खून का प्यासा, दशानन का कबीला है।
सुन्दर।
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