17 June, 2018

उत्तम दोहे

रस्सी जैसी जिंदगी, तने तने हालात |
एक सिरे पे ख्वाहिशें, दूजे पे औकात ||

पहली कक्षा से सुना, बैठो तुम चुपचाप।
यही आज भी सुन रहा, शादी है या शाप।।

रहा तरस छह साल से, लगे निराशा हाथ |
दिखी आज आशा मगर, दो बच्चों के साथ ||

धत तेरे की री सुबह, तुझ पर कितने पाप।
ख्वाब दर्जनों तोड़ के, लेती रस्ता नाप।।


चंद चुनिंदा मित्र रख, जिंदा रख हर शौक।
ठहरेगी बढ़ती उमर, करे जिक्र हर चौक।|

वृक्ष काट कागज बना, लिखते वे सँदेश |
"वृक्ष बचाओ" वृक्ष बिन, बिगड़ेगा परिवेश ||

मार्ग बदलने के लिए, यदि लड़की मजबूर |
कुत्ता हो या मर्द हो, मारो उसे जरूर ||

हाथ मिलाने से भला, निखरे कब सम्बन्ध।
बुरे वक्त में थाम कर, रविकर भरो सुगन्ध।

संग जलेगा शर्तिया, रविकर आधा पेड़ |
एक पेड़ तो दो लगा, अब तो हुआ अधेड़ ||

जिम्मेदारी की दवा, पीकर रविकर मस्त।
दौड़-धूप दिनभर करे, किन्तु न होता पस्त।।


अच्छी बातें कह चुका, जग तो लाखों बार।
किन्तु करेगा कब अमल, कब होगा उद्धार।।

रखे व्यर्थ ही भींच के, मुट्ठी भाग्य लकीर।
कर ले दो दो हाथ तो, बदल जाय तकदीर।।

भँवर सरीखी जिंदगी, हाथ-पैर मत मार।
देह छोड़, दम साध के, होगा बेडा पार ।।

रोज़ खरीदे नोट से, रविकर मोटा माल।
लेकिन आँके भाग्य को, सिक्का एक उछाल।।

खले मूढ़ की वाह तब, समझदार जब मौन।
काव्य शक्ति-सम्पन्न तो, कवि को भूले कौन।।

दल के दलदल में फँसी, मुफ्तखोर जब भेड़ ।
सत्ता कम्बल बाँट दे, उसका ऊन उधेड़ ।।

गली गली गाओ नहीं, दिल का दर्द हुजूर।
घर घर मरहम तो नही, मिलता नमक जरूर।।

फूँक मारके दर्द का, मैया करे इलाज।
वह तो बच्चों के लिए, वैद्यों की सरताज।

हर मकान में बस रहे, अब तो घर दो चार।
पके कान दीवार के, सुन सुन के तकरार।।

शीलहरण पे पढ़ रही, भीड़ व्याह के मन्त्र |
सहनशील-निरपेक्ष मन, जय जय जय जनतंत्र ||

अधिक आत्मविश्वास में, इस धरती के मूढ़ |
विज्ञ दिखे शंकाग्रसित, यही समस्या गूढ़ ||

धर्म-कर्म पर जब चढ़े, अर्थ-काम का जिन्न |
मंदिर मस्जिद में खुलें, नए प्रकल्प विभिन्न ||

धनी पकड़ ले बिस्तरा, भाग्य-विधाता क्रूर ।
ले वकील आये सगे, रखा चिकित्सक दूर।।

छलके अपनापन जहाँ, रविकर रहो सचेत।
छल के मौके भी वहीं, घातक घाव समेत।।



5 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 19 जून 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. वाह,वाह! एक-एक दोहा सच्चाई से भरा हुआ ..। आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ ...बहुत दमदार लेखनी है आपकी सर .।

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  3. सभी दोहे लाजवाब, संग्रहणीय। कहीं व्यंग्य की तीखी धार तो कहीं सदुपदेश के मधुर बोल....
    ये दोहे मुझे विशेष अच्छे लगे...
    संग जलेगा शर्तिया, रविकर आधा पेड़ |
    एक पेड़ तो दो लगा, अब तो हुआ अधेड़ ||

    रस्सी जैसी जिंदगी, तने तने हालात |
    एक सिरे पे ख्वाहिशें, दूजे पे औकात ||

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  4. निमंत्रण विशेष : हम चाहते हैं आदरणीय रोली अभिलाषा जी को उनके प्रथम पुस्तक ''बदलते रिश्तों का समीकरण'' के प्रकाशन हेतु आपसभी लोकतंत्र संवाद मंच पर 'सोमवार' ०९ जुलाई २०१८ को अपने आगमन के साथ उन्हें प्रोत्साहन व स्नेह प्रदान करें। 'एकलव्य' https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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  5. सुन्दर पंक्तियां ..... फूँक मारके दर्द का, मैया करे इलाज।
    वह तो बच्चों के लिए, वैद्यों की सरताज।

    आपका मेरे ब्लॉग पर ह्क़र्दिक स्वागत है
    https://bikhareakshar.blogspot.com/


    http://kbsnco.blogspot.com/



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