चेहरे बदलते जाते, मुखड़ा नकाब में है
हर कदम पर धोखा, धुत वो शराब में है
हर कदम पे बदला, बदला ज़माना सारा
लोहा न लकड़ी काटे, मानव खराद में है
युवा छात्र जिनके हाथों में सेल या पत्थर
पड़ने में क्या मजा है, जोकि शबाब में है
झुर-मुट में बैठी छात्रा, सजती है सुंदर कापी
मुस्कराना-हँसना, उनके मिजाज़ में है
सड़के बनाई पक्की, नक्की कराई नहरें
जाकर उधर जो देखा, सारा ख्वाब में है
कर्मचारी कैसे, पैसे पे करते करतब
फिफ्टी बटाते फिर भी सब-कुछ हिसाब में है
कैसा ज़माना आया, महंगा हुआ है जीना
कुछ भी इधर चखोगे, तीखा स्वाद में है
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