दर्द-गम के सिवा क्या बहाने है अब
जो अपने थे वही बेगाने हैं अब
किश्ती मझधार में डगमगाने लगी
किसी ने पतवार नहीं थामे हैं अब
उनको ख़रीदे हुए दुखों का रोना
अपनों को गैर माने हैं अब
अच्छी फूली-फली हमारी बगिया
पुराने पेड़ तो सूख जाने हैं अब
खैर मानो या न मानो 'रविकर'
जो न देखे, वे दिन आने हैं अब
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