दीखते हैं मुझे दृश्य सब मनोहारी
कुसुम कलिकाओं से सुगंध तेरी आती है
कोकिला की कूक में भी स्वर की सुधा सुन्दर
प्यार की मधुर टेर सारिका सुनाती है
देखूं शशि छबि या निहारूं अंशु सूर्य के -
रंग छटा उसमे तेरी ही दिखाती है
कमनीय कंज कलिका विहस 'रविकर'
तेरे रूप-धूप का सुयश फैलाती है
sundar kavita
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeletelajawaab...
ReplyDeleteshort n sweet n solid...