26 July, 2011

घनाक्षरी

घन घड़-घडात बा , रोज बरस जात बा,
ताल नद अघात बा , पानी घनघोर बा |

अतड़ी कुलबुलात, रोज कमा रोज खात,
कहीं नहीं अन्न पात, थका पोर-पोर बा |

जमींदार, साहूकार, देवें नाहीं एहि बार,
हवालाते पड़े - सड़े, पक्का जमाखोर बा |  

नैनी हो या मुक्तसर, गेहूं सड़ा रोड पर,
चहुँ ओर भुखमरी, खाद्य-मंत्री ढोर बा ||

18 comments:

  1. आप की घनाक्षरी जोरदार है और समस्या पूर्ति की ऐतिहासिक पोस्ट का हिस्सा है


    घनाक्षरी समापन पोस्ट - १० कवि, २३ भाषा-बोली, २५ छन्द

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  2. नैनी हो या मुक्तसर, गेहूं सड़ा रोड पर,
    चहुँ ओर भुखमरी, खाद्य-मंत्री ढोर बा ||
    कमाल कमाल कमाल। आपका हर ब्लाग कमाल का है पहली बार देखे आज सभी ब्लाग। बधाई आपको।

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  3. अहा हा...अद्भुत रचना है..शब्द शब्द सच्चाई बयां करती हुई...
    नीरज

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  4. शब्दों का अद्भुत समावेश .....बहुत खूब

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  5. बहुत खूब लिखा है .....

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  6. आहा .. ये तो नवीन जी के ब्लॉग पर भी पढ़ा ... गज़ब का शब्द संयोजन किया है अओने दिनेश जी ... मज़ा आ गया ...

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  7. कमाल लिखते है आप....घनघोर शब्द बरसा दिए है....

    सुन्दर

    आदर सहित

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  8. सुन्दर रचना. आभार.

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  9. शब्द-शब्द घनघनात बा ...!!
    बहुत सुंदर ..!!

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  10. सुन्दर रचना।

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  11. बेहद सटीक शब्द भेदी बाण सत्ता के कानों पर जूँ रेंगे न रे .

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  12. Bahut hi sundar
    naya hu,aap sab ka sahiyog
    link: http//bachpan ke din-vishy.blogspot.com/

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  13. बहुत ही सुन्दर....

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  14. aapka bhi jabab nahi hai..aapki racnayein kai baar padhne ka man karta hai..sadar pranam ke sath

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  15. bhaut hi sundar shabd rachna...

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  16. kin shabdo me tarif karo...shbda nahi mil rahe hai ....dam-damkat ba kavita jordar hai

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