"क्षमा -याचना सहित"
हर लेख को सुन्दर कहा, श्रम को सराहा हृदय से,
अब तर्क-संगत टिप्पणी की पाठशाला ले चलो ||
खूबसूरत शब्द चुन लो, भावना को कूट-कर के
माखन-मलाई में मिलाकर, मधु-मसाला ले चलो |
विज्ञात-विज्ञ विदोष-विदुषी के विशिख-विक्षेप मे |
इस वारणीय विजल्प पर, इक विजय-माला ले चलो | वारणीय=निषेध करने योग्य विजल्प=व्यर्थ बात विशिख=वाण
विदोष-विदुषी= निर्दोष विदुषी विज्ञात-विज्ञ= प्रसिध्द विद्वान
क्यूँ दूर से निरपेक्ष होकर, हाथ करते हो खड़े -
ना आस्तीनों में छुपाओ, तीर - भाला ले चलो ||
टिप्पणी के गुण सिखाये, आपका अनुभव सखे,
चार-छ: लिख कर के चुन लो, मस्त वाला ले चलो ||
चार-छ: लिख कर के चुन लो, मस्त वाला ले चलो ||
लेखनी-जिभ्या जहर से जेब में रख लो, बुझा कर -
हल्की सफेदी तुम चढ़ाकर, हृदय-काला ले चलो |
टिप्पणी जय-जय करे, इक लेख पर दो बार हरदम-
कविता अगर 'रविकर' रचे तो, संग-ताला ले चलो |
" तटस्थ रहना पाप नहीं "
ब्लॉग युध्द से प्रेरित
झगड़ा-झंझट को झटक, झूलन-झगरू चूम|
मध्यस्थी के मर्म में, घोंपे चाक़ू झूम |
घोंपे चाक़ू झूम, रीति है झारखण्ड में -
झगड़े में मत घूम, कटेगा फिरी-फण्ड में |
नक्सल छ: इंच छोटा करेगा
या
पुलिस एंकाउन्टर कर देगी
जीत उसी का हक़, पक्ष जो भाई तगड़ा |
जरा दूर से देख, बड़े मल्लों का झगड़ा ||
क्यूँ दूर से निरपेक्ष होकर, हाथ करते हो खड़े -
ReplyDeleteअब आस्तीनों में छुपा मत, तीर-भाला ले चलो ||
टिप्पणी के गुण सिखाये, आपका अनुभव सखे,
चार-छ: लिख कर के प्यारे, मस्त वाला ले चलो ||bahut badhiyaa bahut badhiyaa
आपके कवि-हृदय की प्रशंसा में जितना कहा जाय कम है।
ReplyDeleteजबर्दस्त!
ReplyDeleteकल 12/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
संग ताला ले चलो…………क्या बात कही है……………अब दस्तूर ही ऐसा है यहाँ का कितना गरज लो बरस लो करना सबने अपने मन की है मगर कहकर तो गुबार निकाला ही जा सकता है ना……………वैसे टिप्पणियो ने बहुत रुलाया है ब्लोगजगत के लोगो ने……………हा हा हा।
ReplyDeleteवाह, क्या बात है।
ReplyDeleteबहुत बढिया
लेखनी-जिभ्या जहर से जेब में रख लो, बुझा कर -
ReplyDeleteहल्की सफेदी तुम चढ़ाकर, हृदय-काला ले चलो |
bhut khub.
'फिरी फंड'
ReplyDeleteशब्दों को बड़ी कुशलता से इस्तेमाल करते हैं आप। बधाई।
जी !!
ReplyDeleteब्लॉग पर चल रहे महायुध्द में
'हम तटस्थ लोगों'
का पक्ष रखने की एक कोशिश है यह रचना ||
बहुत बढि़या।
ReplyDeleteबहुत बढिया
ReplyDeleteक्यूँ दूर से निरपेक्ष होकर, हाथ करते हो खड़े -
ReplyDeleteना आस्तीनों में छुपाओ, तीर - भाला ले चलो ||
वाह, क्या बात है... बहुत सार्थक... साधू साधू...
लेखनी-जिभ्या जहर से जेब में रख लो, बुझा कर -
ReplyDeleteहल्की सफेदी तुम चढ़ाकर, हृदय-काला ले चलो |
टिप्पणी जय-जय करे, इक लेख पर दो बार हरदम-
कविता अगर 'रविकर' रचे तो, संग-ताला ले चलो |
.....बहुत खूब!
@ आशुकवि रविकर जी,
ReplyDeleteआपकी कविताई सर्वश्रेष्ठ... भाव सुलझे हुए.. विनम्र...
बहुत बढिया
ReplyDelete.बहुत खूब /अति सुंदर //
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