शांता-सृंगी विवाह
भाग-1
इन्तजार इस व्याह का, करते राजा-रंक |
अति लम्बे दुर्भिक्ष का, झेला दारुण-डंक ||
वरुण देव करते रहे, मिटटी महा पलीद |
रिस्य रिसर्चर सृंग से, जागी अब उम्मीद ||
शांता के सद्कर्म से, अब होगा कल्याण |
तड़प-तड़प जीते रहे, बच जायेंगे प्राण ||
रीति-कर्म होने लगे, वैवाहिक संस्कार |
राजमहल के सामने, लागी भीड़ अपार ||
भंडारे में आ रहे, दूर दूर से लोग |
पांच दिनों से खा रहे, सारे नियमित भोग ||
सृन्गेश्वर में सज गई, शंकर सी बारात |
परम बटुक लेकर चला, वर्षा की सौगात ||
दुल्हे संग इक पोटली, रही बगल में साज |
तरह तरह के साज से, गुंजित मधु-आवाज ||
दस बारह दिन से यहाँ, गरजें बादल खूब |
बेमतलब के नाट्य से, रही शांता ऊब ||
जैसे चंपा नगर में, करता वर परवेश |
भूरे बादल छा गए, जस ताकें आदेश ||
सादर अगवानी करे, राजा राजकुमार |
बिबंडक ऋषि का सभी, करते हैं आभार ||
होय मंगलाचार इत, उत पानी बुंदियाय |
दादुर टर-टर बोलते, जीव-जंतु हर्षाय ||
इधर बराती चापते, छक के छप्पन भोग |
परम बटुक ढूंढे उधर, अच्छा एक सुयोग ||
साधारण से वेश में, पीयर धोती पाय |
धीरे धीरे शांता, बैठी मंडप आय ||
जमे पुरोहित उभय पक्ष, सुन्दर लग्न विचार |
गठबंधन करके भये, फेरे को तैयार ||
पहले फेरे के वचन, पालन-पोषण खाद्य |
संगच्छध्वम बोलते, बाजे मंगल वाद्य ||
स्वस्थ और सामृद्ध हो, त्रि-आयामी स्वास्थ |
भौतिक औ अध्यात्म सह, मिले मानसिक आथ ||
धन-दौलत शक्ति मिले, ख़ुशी मिले या दर्द |
भोगे मिलकर संग में, दोनों औरत-मर्द ||
इक दूजे का नित करें, आदर प्रति-सम्मान |
परिवारों के प्रति रहे, इज्जत एक समान ||
सुन्दर योग्य बलिष्ठ हो, अपने सब संतान |
कहें पांचवा वचन ये, विनवौं हे भगवान् ||
शान्ति-दीर्घ जीवन मिले, रहे हमारा साथ |
सिद्ध सदा करते रहें, इक दूजे के स्वार्थ ||
एक दूसरे के प्रती, समझदार साहचर्य |
वफादार बनकर रहें, बने रहें आदर्य ||
सातों वचनों को करें, दोनों अंगीकार |
बारिश की लगती झड़ी, होय मूसलाधार ||
तीन दिनों तक अनवरत, भारी वर्षा होय |
घुप्प अँधेरा छा रहा, धरती दिया भिगोय ||
किच-किच होता महल में, लगे ऊबने लोग |
भोजन की किल्लत हुई, खले लाग संयोग ||
सूर्य-देवता ने दिया, दर्शन चौथे रोज |
मस्ती में सब झूमते, नव- आशा नव-ओज ||
वैवाहिक सन्दर्भ में, शुरू हुई फिर बात |
विधियाँ सब पूरी हुईं, विदा होय बारात ||
शांता ने सादर कहा, सुनिए प्रिय युवराज |
कन्याशाळा के भवन, का कैसा है काज ||
मुझे देखनी है प्रगति, ले चलिए अस्थान |
सृंगी-रूपा भी चले, आत्रेयी मेहमान ||
आधा से ज्यादा बना, दो एकड़ फैलाव |
सृंगी बोले बटुक से, वह थैली ले आव ||
गीली थैली जब तलक, बटुक वहां पर लाय |
चार क्यारियाँ स्वयं ही, सृंगी रहे बनाय ||
शांता ने रुद्राक्ष के, बदले भेजा धान |
औषधियेय प्रभाव से, डाली इसमें जान ||
मन्त्रों से ये सिद्ध हैं, उच्च-कोटि के धान |
अन्नपूर्णा की कृपा, सदा सर्वदा मान ||
चार क्यारियों में इन्हें, रोपें स्त्री चार ||
बारह-मासी ये उगें, जस जिसका व्यवहार ||
कन्याओं को नित मिले, मन-भर बढ़िया भात ||
द्रोही गर इनको छुवे, होय तुरत आघात ||
आत्रेयी रूपा सहित, शांता रमणी जाय |
अपनी अपनी क्यारियाँ, सुन्दर देत सजाय ||
बोलें भैया सोम्पद, इक-हजार अनुदान |
नियमित मिलिहै कोष से, रुके नहीं अभियान ||
दीदी मैंने शर्त ये, पूरी कर दी आज |
दूजी अपनी शर्त का, खोलो अबतो राज |
जुटे बहुत से लोग हैं, रहे राज अब राज |
कभी बाद में मैं कहूँ, क्या तुमको एतराज ||
दीदी मैं तो आपका, अपना छोटा भाय |
हर इच्छा पूरी करूँ, गंगे सदा सहाय ||
सृंगी के आशीष से, बहुरे मंगल-मोद |
हरी भरी होने लगी, अंगदेश की गोद ||
रूपा के सानिध्य में, चंचल राजकुमार |
आँख बचा कर सभी की, करता आँखें चार ||
शांता से छुपता नहीं, लेकिन यह व्यवहार |
रमणी को वह सौंपती, रूपा का सब भार ||
बीस वर्ष का हो गया, लम्बा यहाँ प्रवास |
शांता आगे बढ़ चली, फिर से नए निवास ||
है कैसी यह बिडम्बना, नारी जैसे धान |
बार-बार बोई गई, बदल-बदल स्थान ||
धान कूट के फिर मिले, चावल निर्मल-श्वेत |
खेत-खेत की यात्रा, हो जाती फिर खेत ||
बहुत ही रोचक्।
ReplyDeleteHari om
ReplyDeleteAanand aaya padh kar
Aabhaar. .
आप की रचना बड़ी अच्छी लगी और दिल को छु गई
ReplyDeleteइतनी सुन्दर रचनाये मैं बड़ी देर से आया हु आपका ब्लॉग पे पहली बार आया हु तो अफ़सोस भी होता है की आपका ब्लॉग पहले क्यों नहीं मिला मुझे बस असे ही लिखते रहिये आपको बहुत बहुत शुभकामनाये
आप से निवेदन है की आप मेरे ब्लॉग का भी हिस्सा बने और अपने विचारो से अवगत करवाए
धन्यवाद्
दिनेश पारीक
http://dineshpareek19.blogspot.com/
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
उतनी ही उम्दा प्रस्तुति !
ReplyDeleteभाई लाजवाब ..... बहुत ही उम्दा ...
ReplyDeletebhaut hi lajwab wa umda prastuti
ReplyDeleteगीति नाटिका की कथावस्तु है भाई साहब यह प्रस्तुति .पूरा गीति नाट्य है यह लम्बी काव्यात्मक अभिव्यक्ति .
ReplyDeleteachha lga ....aabhar.
ReplyDeleteसुन्दर वर्णन....
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