रविकर--
माता होय कुरूप अति, होंय पिता भी अंध |वन्दनीय ये सर्वदा, अतिशय पावन बंध ||
बंध = शरीर
उच्चारण अतिशय भला, रहे सदा आवाज |
शब्द छीजते हैं नहीं, पञ्च-तत्व कर लाज ||
देव आज देते चले, फिर से पैतिस साल |
स्वस्थ रहेंगे सर्वदा, नौनिहाल सौ पाल ||
रूप चंद्र रस पान करें , रवि रतनारे नैन
सरसों सरसी सुर सधे,मधुर मधुर मधु बैन.
गेहूँ गाय गीत गज़ल, सरसों करे सिंगार
नील वसन में श्याम जू,मानो आये द्वार.
शौक हुआ सिलवा लिया, बंद गले का सूट
सजनी गर तारीफ करें , पैसे जायें छूट.
नेह रेशमी डोर फिर , माँझे का क्या काम
प्रेम पतँगिया झूमती, ज्यों राधा सँग श्याम.
ऋतु आवत जावत रहे, पतझर पाछ बसंत
प्रेम पत्र कब सूखता ? इसकी आयु अनंत.
शास्त्री जी व रविकर जी को सादर............
प्रत्युत्तर देंहटाएंसरसों सरसी सुर सधे,मधुर मधुर मधु बैन.
गेहूँ गाय गीत गज़ल, सरसों करे सिंगार
नील वसन में श्याम जू,मानो आये द्वार.
शौक हुआ सिलवा लिया, बंद गले का सूट
सजनी गर तारीफ करें , पैसे जायें छूट.
नेह रेशमी डोर फिर , माँझे का क्या काम
प्रेम पतँगिया झूमती, ज्यों राधा सँग श्याम.
ऋतु आवत जावत रहे, पतझर पाछ बसंत
प्रेम पत्र कब सूखता ? इसकी आयु अनंत.
शास्त्री जी व रविकर जी को सादर............
जबरदस्त ये भाव हैं, निगमागम का रूप ।
तन-मन मति निर्मल करे, कुँवर अरुण की धूप ।।
दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
प्रत्युत्तर देंतन-मन मति निर्मल करे, कुँवर अरुण की धूप ।।
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सम्बंधित दोहे-
मेरे चित्र पर दो टिप्पणियाँ की थी!
गेहूं जामे गजल सा,
सरसों जैसे छंद |
जामे में सोहे भला,
सूट ये कालर बंद ||
प्रत्युत्तर दें
“उत्तर”
सुटवा कालर बंद ||
उसी के उत्तर में पाँच दोहे
समर्पित कर रहा हूँ!
-0-0-0-0-0-
वृद्धावस्था में कहाँ, यौवन जैसी धूप।१।
गेहूँ उगता ग़ज़ल सा, सरसों करे किलोल।
बन्द गले के सूट में, ढकी ढोल की पोल।२।
मौसम आकर्षित करे, हमको अपनी ओर।
कनकइया डग-मग करे, होकर भावविभोर।३।
कड़क नहीं माँझा रहा, नाज़ुक सी है डोर।
पतंग उड़ाने को चला, बिन बाँधे ही छोर।४।
पत्रक जब पीला हुआ, हरियाली नहीं पाय।
ना जाने कब डाल से, पका पान झड़ जाय।५।
बढ़िया लगा संवाद...
ReplyDeleteदोहे रुचिकर..
सादर..
वाह...वाह...वाह...
ReplyDeleteसमां ही बाँध दिया आप दोनों विद्व जनों ने मिलकर..
अतिशय आनंद आया..लगा जैसे मंच के सम्मुख काव्य गोष्ठी में बैठे हों, जहाँ काव्य रस धार बह रही हो..
वाह ... मज़ा आ गया .. क्या जुगलबंदी है दिनेश जी ...
ReplyDeleteअहा आप लोगों का शीघ्र कवित्व और जुगल बंदी भी । मज़ा आ गया ।
ReplyDeleteअति अति सुन्दर !
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.in
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ...
ReplyDeleteसुन्दर काव्य..बहुत ही सुन्दर लिखा है..बधाई...
ReplyDeleteआनंद रस वर्षंन रविकर, अरुण, रूप के संग ,खूब छनेगी भंग .
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