बोदा लड़का था बड़ा, पर छुटका विद्वान ।
मार-पीट घूमे-फिरे, सारा घर उकतान ।
सारा घर उकतान, करूँ नित मार कुटाई ।
छुटका बसा विदेश, पूर कर बड़ी पढ़ाई ।
रविकर बूढ़ी देह, सेवता घर-भर बड़का ।
बड़के को आशीष, होय इक बोदा लड़का ।।
छुटका बसा विदेश, पूर कर बड़ी पढ़ाई ।
रविकर बूढ़ी देह, सेवता घर-भर बड़का ।
बड़के को आशीष, होय इक बोदा लड़का ।।
जंगल में मोर नाचा किसने देखा। जो वक़्त पर मौजूद है वही है।
ReplyDeleteमन को उद्वेलित करने वाली रचना...
ReplyDeleteये दर्द है या रचना ... गहरी बात कही है ...
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना...गहरी अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteआज के सामाजिक और पारिवारिक ढाँचे को बखान करती बात...!
ReplyDeleteछोटे के लिये-
ReplyDeleteबड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर
बापू को सेवा नहीं , बस देता नासूर
बस देता नासूर , बात डालर की करता
मात पिता का पेट, कहाँ डालर से भरता