गारी गुप्ता कर रहा, जाल जगत पर आज ।
मूल विषय खोवे सकल, गिरे गजल पर गाज ।
गिरे गजल पर गाज, वंदना के स्वर रूठे ।
कौन यहाँ महफूज, मिटे सब दुष्ट अनूठे ।
भौतिकता धन धान्य, जला सकती चिंगारी ।
मन जीवन सम्मान, जलाती कटुता गारी ।।
बोदा लड़का था बड़ा, पर छुटका विद्वान ।
मार-पीट घूमे-फिरे, सारा घर उकतान ।
सारा घर उकतान, करूँ नित मार कुटाई ।
छुटका बसा विदेश, पूर कर बड़ी पढ़ाई ।
रविकर बूढ़ी देह, सेवता घर-भर बड़का ।
दूँ उसको आशीष, होय इक बोदा लड़का ।।
सच्ची बात कही थी मैंने.......!
ReplyDelete...आगे भी कहता रहूँगा !