काया कैन्सर ।
कुण्डली रूप धर ।
दीखे इधर ।।
दर्द जिस्म का ।
जाल जगत पर--
किस्म किस्म का ।।
चले डरके
हाय-तोबा करके ।
आंसू भरके ।।
हैं धमकाते
जबरदस्ती आते
क्यूँ तड़पाते ।।
पत्नी की सौत
तू है अगर मौत
तो लगा गले ।।
गाली-गलौज ।
बिजबिजाते हौज -
करे हैं मौज ।
सार्थक पोस्ट, आभार.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर वाह!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 09-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
bahut khoob.
ReplyDeleteबढ़िया हायेकु ...........
ReplyDeleteभावपूर्ण भी...............
सादर.
बहुत बढ़िया हाइकु
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