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दीमक दर दीवार चाटती
सत्ता का दीवान चाटती ।
बड़ी दिलावर चुपके खुलके
तंतु-तंत्र ईमान चाटती ।।
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तरह तरह की दिल्ली दीमक
सूखी रूखी गीली दीमक ।
दूर-दूर से चुनकर आती
खोका पेटी लीली दीमक ।।
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ऊंचे-नीचे सदन विराजे ।
नौकर सैनिक स्वजन विराजे ।
निज काया से बढ़कर खाए
पांच साल तक तूती बाजे ।।
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कागज़ पर जो सजे मसौदे ।
सौदे करके बने घरौंदे ।
सैनिक दीमक रंग रूट वे
खुद अपने बूटों से रौंदें ।।
- उर्वर क्षमता से भर-पूर ।
रहा कलूटा रानी घूर-
इक संसर्गी सत्र बीतता-
न्यू-कालोनी बसी सुदूर ।।
रानी
रानी होती हाइ-कमान ।
सबसे बढ़ के उसका मान ।
कालोनी आबाद कराये-
बढे-चढ़े नित उसकी शान ।।
है दीमक का सपना एक ।
घर की लक्कड़ अपना केक ।
ललचाई नजरों से ताके -
रानी चले लकुटिया टेक ।
कालोनी की अपनी रानी।
अपने मन की रेल बनानी ।
मृत्यु दंड देती है झट-पट -
करे अगर कोई मनमानी ।।
छोटी मोटी खोटी दीमक ।
बड़ी-अड़ी नखरौटी दीमक ।
चारो खम्भों में लग करके-
चाटे बोटी-बोटी दीमक ।
छोटी मोटी खोटी दीमक ।
बड़ी-अड़ी नखरौटी दीमक ।
चारो खम्भों में लग करके-
चाटे बोटी-बोटी दीमक ।
रानी
ReplyDeleteरानी होती हाइ-कमान ।
सबसे बढ़ के उसका मान ।
कालोनी आबाद कराये-
बड़ी आलसी सबकी शान ।।
अच्छा व्यंग है
kalamdaan.blogspot.in
esharo hi esharo mein bahut kuch kh diya hai aapne..lajawab.....
ReplyDeleteबड़े दीमक तो जन्मजात स्प्रे-रेजिस्टेंट हैं।
ReplyDeleteरविकर जी भी कमाल करते है हकीकत को अपने शब्दों में ब्यान करते है।
ReplyDeleteहमको तो लगता है आप सोचते, बोलते और बतियाते भी कविता में ही होंगे।
ReplyDeleteप्रस्तुत पद्य में अनुप्रस की छटा मन मोहती है।
अगर लेबल भी नहीं होता ,
ReplyDeleteतो भी यह सियासत समझ आती !
अच्छे बिम्ब दिखाए हैं !
आगे दीमक ,पीछे दीमक ,लोकतंत्र को चाटे ,दीमक ,
ReplyDeleteआगे दीमक ,पीछे दीमक ,लोकतंत्र को चाटे ,दीमक ,
ReplyDeleteआगे दीमक ,पीछे दीमक ,लोकतंत्र को चाटे ,दीमक ,
ReplyDeleteलोक तंत्र के पाए चाटे ,नित नित ,तान सुनाये दीमक ,