30 April, 2012

चुसुवा के आगे लगें, रविकर सारे फीक -

अम्बिया की चटनी बने, प्याज पुदीना डाल ।
चटकारे ले खा रहा, जो गर्मी की ढाल ।।

आम सफेदा भा गए, किन्तु दशहरी ख़ास ।
सबसे बढ़िया स्वाद है, मलिहाबाद सुवास ।।
बम्बैया में राज है, लंगडा है नाराज ।
चौसा चूसे चिलबिला, फ़जली फ़िदा समाज ।।

किशनभोग है पूर्व का, हिमसागर की धाक ।
अलफांसो है फांसता, केसर गुर्जर नाक ।।

रूमानी सह रसपुरी, बादामी ज़रदालु ।
बंगनपल्ली मुल्गवा, खूब बजावे गाल ।।

चुसुवा के आगे लगें, रविकर सारे फीक ।
अपना तो देशी भला, पाचक लागे नीक ।।



 

12 comments:

  1. बम्बैया,कलकतिया के संग,मद्रासी बाज़ार में
    पड़ी अकेली दिल्ली देखो,आम के कारोबार में

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  2. आज तो आपने बेमौसम आम खिला दिए !
    आभार आपका !

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  3. मज़ा आ गया सर!


    सादर

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  4. बढ़िया जानकारी भी आम पर और सुंदर रचना भी ....

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  5. खटुवा,जेठुवा के सीकर
    नहीं दीखती अब रविकर,
    देसी आमन के आगे
    सब कुछ फीका है रविकर !

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  6. बारहमासी आम है रविकर दिनेश गुप्त.
    ब्लॉगजगत से अब कभी होता नहीं विलुप्त.
    होता नहीं विलुप्त पहुँचते बन खुशखबरी.
    याद दिलाते बहुत पुरानी उड़न तश्तरी.
    जितने भी हैं आम, सभी होते हैं बासी.
    कविवर रविकर आम बना है बारहमासी.

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  7. इतने सारे प्रकार aapne समेत लिए इन पंक्तियों में...

    रसभरी बहुत ही sundar रचना...

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  8. mouth watering pics
    रसभरी रचना

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  9. बढ़िया प्रस्तुति रविकर जी की . गाये महिमा आम ,हमारे रविकर भैया ,महिमा अपरम्पार आम की रविकर भैया . (.कृपया यहाँ भी पधारें - )

    कैंसर रोगसमूह से हिफाज़त करता है स्तन पान .
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_01.html

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  10. awesome creation sir.....:)

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