अम्बिया की चटनी बने, प्याज पुदीना डाल ।
चटकारे ले खा रहा, जो गर्मी की ढाल ।।
आम सफेदा भा गए, किन्तु दशहरी ख़ास ।
सबसे बढ़िया स्वाद है, मलिहाबाद सुवास ।।
बम्बैया में राज है, लंगडा है नाराज ।
चौसा चूसे चिलबिला, फ़जली फ़िदा समाज ।।
किशनभोग है पूर्व का, हिमसागर की धाक ।
अलफांसो है फांसता, केसर गुर्जर नाक ।।
रूमानी सह रसपुरी, बादामी ज़रदालु ।
बंगनपल्ली मुल्गवा, खूब बजावे गाल ।।
चुसुवा के आगे लगें, रविकर सारे फीक ।
अपना तो देशी भला, पाचक लागे नीक ।।
बम्बैया,कलकतिया के संग,मद्रासी बाज़ार में
ReplyDeleteपड़ी अकेली दिल्ली देखो,आम के कारोबार में
आज तो आपने बेमौसम आम खिला दिए !
ReplyDeleteआभार आपका !
मज़ा आ गया सर!
ReplyDeleteसादर
बढ़िया जानकारी भी आम पर और सुंदर रचना भी ....
ReplyDeleteखटुवा,जेठुवा के सीकर
ReplyDeleteनहीं दीखती अब रविकर,
देसी आमन के आगे
सब कुछ फीका है रविकर !
मस्त !
ReplyDeleteबारहमासी आम है रविकर दिनेश गुप्त.
ReplyDeleteब्लॉगजगत से अब कभी होता नहीं विलुप्त.
होता नहीं विलुप्त पहुँचते बन खुशखबरी.
याद दिलाते बहुत पुरानी उड़न तश्तरी.
जितने भी हैं आम, सभी होते हैं बासी.
कविवर रविकर आम बना है बारहमासी.
ravikar ji itne sare Aam dekhkar to munh me pani aa gaya.........
ReplyDeleteइतने सारे प्रकार aapne समेत लिए इन पंक्तियों में...
ReplyDeleteरसभरी बहुत ही sundar रचना...
mouth watering pics
ReplyDeleteरसभरी रचना
बढ़िया प्रस्तुति रविकर जी की . गाये महिमा आम ,हमारे रविकर भैया ,महिमा अपरम्पार आम की रविकर भैया . (.कृपया यहाँ भी पधारें - )
ReplyDeleteकैंसर रोगसमूह से हिफाज़त करता है स्तन पान .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_01.html
awesome creation sir.....:)
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