06 May, 2012

चले चतुर चौकन्ने चौकस-

श्वेत कनपटी तनिक सी, मुखड़ा गोल-मटोल ।
नई व्याहता दोस्त की, खिसकी अंकल बोल ।
चले चतुर चौकन्ने चौकस ।

केश रँगा मूंछे मुड़ा, चौखाने की शर्ट |
अन्दर खींचे पेट को, अंकल करता फ्लर्ट |
मिली तवज्जो फिर तो पुरकस |

धुर-किल्ली ढिल्ली हुई, खिल्ली रहे उड़ाय |
जरा लीक से हट चले, डगमगाय बलखाय |
रहा सालभर चालू सर्कस |

दाढ़ी मूंछ सफ़ेद सब, चश्मा लागा मोट ।
इक अम्मा बाबा कही, सांप कलेजे लोट ।
बैठ निहारूं खाली तरकस ।।


4 comments:

  1. बहुत अच्छी रचना..

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  2. ये है हास्य व्यंग्य विनोद की सटीक बानगी .शुक्रिया .
    कृपया यहाँ भी पधारें -
    सोमवार, 7 मई 2012
    भारत में ऐसा क्यों होता है ?
    भारत में ऐसा क्यों होता है ?
    http://veerubhai1947.blogspot.in/

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  3. @चले चतुर चौकन्ने चौकस

    सटीक व्यंग

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  4. दाढ़ी मूंछ सफ़ेद सब, चश्मा लागा मोट ।
    इक अम्मा बाबा कही, सांप कलेजे लोट ।
    बैठ निहारूं खाली तरकस ।।

    निराला अंदाज है आपका.
    शब्द शब्द से व्यंग्य टपक रहा है

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