श्वेत कनपटी तनिक सी, मुखड़ा गोल-मटोल ।
नई व्याहता दोस्त की, खिसकी अंकल बोल ।
चले चतुर चौकन्ने चौकस ।
केश रँगा मूंछे मुड़ा, चौखाने की शर्ट |
अन्दर खींचे पेट को, अंकल करता फ्लर्ट |
मिली तवज्जो फिर तो पुरकस |
अन्दर खींचे पेट को, अंकल करता फ्लर्ट |
मिली तवज्जो फिर तो पुरकस |
धुर-किल्ली ढिल्ली हुई, खिल्ली रहे उड़ाय |
जरा लीक से हट चले, डगमगाय बलखाय |
रहा सालभर चालू सर्कस |
जरा लीक से हट चले, डगमगाय बलखाय |
रहा सालभर चालू सर्कस |
दाढ़ी मूंछ सफ़ेद सब, चश्मा लागा मोट ।
इक अम्मा बाबा कही, सांप कलेजे लोट ।
बैठ निहारूं खाली तरकस ।।
बहुत अच्छी रचना..
ReplyDeleteये है हास्य व्यंग्य विनोद की सटीक बानगी .शुक्रिया .
ReplyDeleteकृपया यहाँ भी पधारें -
सोमवार, 7 मई 2012
भारत में ऐसा क्यों होता है ?
भारत में ऐसा क्यों होता है ?
http://veerubhai1947.blogspot.in/
@चले चतुर चौकन्ने चौकस
ReplyDeleteसटीक व्यंग
दाढ़ी मूंछ सफ़ेद सब, चश्मा लागा मोट ।
ReplyDeleteइक अम्मा बाबा कही, सांप कलेजे लोट ।
बैठ निहारूं खाली तरकस ।।
निराला अंदाज है आपका.
शब्द शब्द से व्यंग्य टपक रहा है