क्लीन-चिट
(1)
क्लीन चिटें बँटने लगीं, आ विदेश से जाय ।तीस साल की गर्द भी, झटपट जाय झड़ाय |
झटपट जाय झड़ाय, चिटें सत्ता को भाती |
कब से रहा निहार, क्लीन चिट को गुजराती |
एस आई टी तुष्ट, पुष्ट कुछ हो ना पाया ।
अब भी दंगा-दुष्ट, मीडिया दाग लगाया ||
(2)
अधिकारी ऊँचा सुने, व्यर्थ करे बकवाद |जाय ग़रीबों को झिड़क, सुने नहीं फ़रियाद |
सुने नहीं फ़रियाद, फेल है तंत्र समूचा |
बौने बौने लोग, शोर ऊंचा से ऊंचा ।
नोट रहे हैं छाप, पाप-घट भरता भारी ।
पकड़ा जाय परन्तु, क्लीन-चिट का अधिकारी ।।
बहुत सटीक और सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteक्लीन-चिट या क्लीन बोल्ड !!
ReplyDeleteजैसे-जैसे आएगा,दिन चुनाव का पास
ReplyDeleteड्राई क्लीन होंगे सब चीटर,रखिए पूरी आस
सही कहा!
ReplyDeleteबद अच्छा बदनाम बुरा ,बिन पैसे इंसान बुरा
ReplyDeleteकाम सभी का एक ही है पर मोदी जी का नाम बुरा
सत्ता पर इलज़ाम बुरा ,स्विस बैंक बदनाम छुरा ।li.बधाई स्वीकार करें .कृपया यहाँ भी पधारें -
शनिवार, 12 मई 2012
क्यों और कैसे हो जाता है कोई ट्रांस -जेंडर ?
क्यों और कैसे हो जाता है कोई ट्रांस -जेंडर ?
http://veerubhai1947.blogspot.in/
चीट भला कब क्लीन हो, कित्तो करो उपाय
ReplyDeleteडामर, डामर ही रहे , रबड़ी ना बन पाय
रबड़ी ना बन पाय , रहे जो लंद - फंद में
फर्क नहीं मिट पाय , कोयला - कलाकंद में
कौन करे विश्वास , तू लाख ढिंढोरा पीट
कित्तो करो उपाय, कब क्लीन भला हो चीट.
रबड़ी रब को प्रिय लगे, डामर मर मर जाय |
Deleteदूध कोयले पर जले, रबड़ी मस्त बनाय |
रबड़ी मस्त बनाय , क्लीन चिट चीटर पाए |
नंबर दो का माल, छुपा के दायें-बाएं |
वाल्मीकि सम होय, बाँध के भगवा पगड़ी |
कलाकंद नित खाय, चापता चम्-चम् रबड़ी ||
क्लीन चिटें बँटने लगीं, आ विदेश से जाय ।
ReplyDeleteतीस साल की गर्द भी, झटपट जाय झड़ाय |
ये खूब कही.
बहुत ही सुन्दर लिखा है, सुन्दर रचना!
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति.
माँ है मंदिर मां तीर्थयात्रा है,
माँ प्रार्थना है, माँ भगवान है,
उसके बिना हम बिना माली के बगीचा हैं!
संतप्रवर श्री चन्द्रप्रभ जी
→ आपको मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं..
आपका
सवाई सिंह{आगरा }
पूरे तंत्र में सिमटे, अनाचार, अव्यवस्था की आपने सही तस्वीर प्रस्तुत की है।
ReplyDeleteबहुत अच्छी कटाक्ष भरी कुण्डलियाँ वाह
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