13 May, 2012
मांगें मंदी चीज, इधर दुनिया में मंदी-
मंहगाई से त्रस्त जन, असफल सब तद्-बीज ।
गुणवत्ता उत्कृष्टता, मांगें मंदी चीज ।
मांगें मंदी चीज, इधर दुनिया में मंदी ।
अर्थव्यवस्था बैठ, होय छटनी सह बंदी ।
रविकर कैसा न्याय, एक को मंदी खाई ।
निन्यान्नबे हलकान, बड़ी जालिम मंहगाई ।।
2 comments:
संतोष त्रिवेदी
13 May 2012 at 20:54
सही बात है भाई ...!
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www.navincchaturvedi.blogspot.com
14 May 2012 at 20:34
क्या बात है गुप्ता जी
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सही बात है भाई ...!
ReplyDeleteक्या बात है गुप्ता जी
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