20 May, 2012

गर्दभ ब्रह्मा शीश, दैत्य का हितकर बनता -


जनता गधा-गंवार है, नीति-नियम का दास ।
नेता कौआ-हंस है, सत्ता वैभव पास ।

सत्ता वैभव पास, हिले मर्जी से पत्ता ।
राष्ट्र-धर्म परिहास, करे पल-पल अलबत्ता । 

गर्दभ ब्रह्मा शीश, दैत्य का हितकर बनता  ।
शंकर देंगें काट, तभी खुश होगी जनता ।।

(ब्रह्मा के पांच मुख थे, पांचवां गधे का था, 
जो नित-दैत्यों का ही पक्ष लेता था ।)


9 comments:

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    1. खुले तीसरा नेत्र अगर त्रिपुरारी का -
      भरे पाप का घडा-इस अत्याचारी का
      रेव पार्टी में बने हैं शंकर घनचक्कर
      तनिक मामला फंसा बड़ी खुमारी का ||

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  2. सच्ची कहते तात, त्रिपुर के वंशज सारे।
    बैठे ले कर घात, प्रजा अब बिना सहारे॥

    जब काटेंगे शीश, उठा कर शूल शंकरा।
    तभी मिटेगी टीस, मिटे जब वंश मंथरा॥

    रचना पढ़ी तुम्हार, उपज आई ये रचना।
    बन जाओ मक्कार, तभी संभव है बचना॥

    सादर।

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  3. अधखुली आंख से देखते,देवों के जो देव
    इधर अन्न को परेशां,उधर पार्टी रेव !

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  4. सार्थक प्रस्तुति।

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  5. क्यों गर्दभ है साथ,दैत्य के भरे हुंकारी|
    ले त्रिसूल संहार करो, हे शिव त्रिपुरारी ||

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