O B O द्वारा आयोजित
"चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक -१४
कुंडली
बालक सोया था पड़ा, माँ-बापू से खीज |
मेले में घूमा-फिरा, मिली नहीं पर चीज |
मिली नहीं पर चीज, करे पुरकस नंगाई |
नटखट नाच नचाय, नींद निसि निश्छल आई |
बालक सोया था पड़ा, माँ-बापू से खीज |
मेले में घूमा-फिरा, मिली नहीं पर चीज |
मिली नहीं पर चीज, करे पुरकस नंगाई |
नटखट नाच नचाय, नींद निसि निश्छल आई |
हो कठपुतली नाच, मगन मन जागा गोया ।
डोर कौतिकी खींच, करे खुश बालक सोया ||
कुंडली
नहीं बिलौका लौकता, ना ही कुक्कुर भौंक |
खिड़की भी तो बंद है, देखे भोलू चौंक |
खिड़की भी तो बंद है, देखे भोलू चौंक |
देखे भोलू चौंक, लाप लय लहर अलौकिक |
हो दोनों तुम कौन, पूँछता परिचय मौखिक |
हो दोनों तुम कौन, पूँछता परिचय मौखिक |
मंद मंद मुस्कान, मौन को मिलता मौका |
रविकर मन की चाह, कभी क्या नहीं बिलौका ||
रविकर मन की चाह, कभी क्या नहीं बिलौका ||
दोहे
कठपुतली बन नाचते, मीरा मोहन-मोर |
दस जन, पथ पर डोलते, करके ढीली डोर ||
कौतुहल वश ताकता, बबलू मन हैरान |
*मुटरी में हैं क्या रखे, ये बौने इन्सान ??
*पोटली
बौने बौने *वटु बने, **पटु रानी अभिजात |
कौतुकता लख बाल की, भूप मंद मुस्कात ||
*बालक **चालाक
राजा रानी दूर के, राजपुताना आय |
चौखाने की शाल में, रानी मन लिपटाय ||
भूप उवाच-
कथ-री तू *कथरी सरिस, क्यूँ मानस में फ़ैल ?
चौखाने चौसठ लखत, मन शतरंजी मैल ||
*नागफनी / बिछौना
बबलू उवाच-
हमरा-हुलके बाल मन, कौतुक बेतुक जोड़ |
माया-मुटरी दे हमें, भाग दुशाला ओढ़ ||
कुंडलिया
गर जिज्ञासा बाल की, होय कठिनतर काम ।
सदा बाल की खाल से, निकलें प्रश्न तमाम ।
निकलें प्रश्न तमाम, बने उत्तर कठपुतली ।
करे सुबह से शाम, जकड ले बोली तुतली |
है दर्शन आध्यात्म, समझ जो पाओ भाषा |
रविकर शाश्वत मोक्ष, मिटा दो गर जिज्ञासा ||
(2)
रविकर तन-मन डोलते, खोले हृदयागार |
स्वागत है गुरुवर सभी, प्रकट करूँ आभार |
प्रकट करूँ आभार, सार जीवन का पाया |
ओ बी ओ ने आज, सत्य ही मान बढाया |
अरुण निगम आभार, कराया परिचय बढ़कर |
शुचि सौरभ संसार, बहुत ही खुश है रविकर ||
स्वागत है गुरुवर सभी, प्रकट करूँ आभार |
प्रकट करूँ आभार, सार जीवन का पाया |
ओ बी ओ ने आज, सत्य ही मान बढाया |
अरुण निगम आभार, कराया परिचय बढ़कर |
शुचि सौरभ संसार, बहुत ही खुश है रविकर ||
बधाई !!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया......
ReplyDeleteवाह जी बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeletebeautiful pic
कुंडली
ReplyDeleteबालक सोया था पड़ा, माँ-बापू से खीज |
मेले में घूमा-फिरा, मिली नहीं पर चीज |
मिली नहीं पर चीज, करे पुरकस नंगाई |
नटखट नाच नचाय, नींद निसि निश्छल आई |
हो कठपुतली नाच, मगन मन जागा गोया ।
डोर कौतिकी खींच, करे खुश बालक सोया ||
प्रथम कुंडली को तृतीय पुरस्कार
यानी शुद्ध २५१/- का लाभ |
Thanks-
O B O
आभारी हूँ आपका, हे आयोजक वृन्द |
पुरस्कार भी पा गया, आया छंद पसंद |
आया छंद पसंद , बधाई अरुण रजिंदर |
खूब पाया आनन्द, मगन मन नाचे रविकर |
पूरे जीवन काल, प्रतिष्ठित पहली बारी |
पहला यह धन-लाभ, मातु शारद आभारी ||
:-)
Deleteबधाई.
कभी न जिज्ञासु दिखे अपना मोहन लाल ,
ReplyDeleteमतिभ्रम में जीवे सदा ,जुग जुग जीवे लाल ,
अरे भई अपना हीरा लाल .
बढ़िया हैं , .भाई साहब अंदाज़ आपक़े .
बधाई । सुंदर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति ।
ReplyDeleteआभार ।।
दोहे और कुंडलियाँ श्रेष्ठ साहित्या का रसपान करवा विभोर करती हैं। बधाई रविकर जी !
ReplyDeleteरविकर जी.... प्रथम बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ...... आपकी रचनाएँ ताज़गी से भरपूर लगी .... विचारों का सुन्दर संयोजन!
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया रचना...
ReplyDeleteदोहे और कुंडलियों के रूप में सुंदर प्रस्तुति !!
ReplyDeleteबधाई.... साभार !!