24 May, 2012

कठपुतली बन नाचते, मीरा मोहन-मोर-

O B O द्वारा आयोजित 

"चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक -१४

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कुंडली
बालक सोया था पड़ा,  माँ-बापू से खीज |

मेले में घूमा-फिरा, मिली नहीं पर चीज  |
मिली नहीं पर चीज, करे पुरकस नंगाई  |
नटखट नाच नचाय, नींद निसि निश्छल आई |
हो कठपुतली नाच, मगन मन जागा गोया ।
डोर कौतिकी खींच,  करे खुश बालक सोया ||

कुंडली
नहीं बिलौका लौकता, ना ही कुक्कुर भौंक |
खिड़की भी तो बंद है, देखे भोलू चौंक |
देखे भोलू चौंक, लाप लय लहर अलौकिक |
हो दोनों तुम कौन, पूँछता परिचय मौखिक |
मंद मंद मुस्कान, मौन को मिलता मौका |
रविकर मन की चाह, कभी क्या नहीं बिलौका ||

दोहे
कठपुतली बन नाचते, मीरा मोहन-मोर |
दस जन, पथ पर डोलते, करके ढीली डोर ||

कौतुहल वश ताकता, बबलू मन हैरान |
*मुटरी में हैं क्या रखे, ये बौने इन्सान ??
*पोटली
बौने बौने *वटु बने, **पटु रानी अभिजात |
कौतुकता लख बाल की, भूप मंद मुस्कात ||
*बालक **चालाक
राजा रानी दूर के, राजपुताना आय |
चौखाने की शाल में, रानी मन लिपटाय ||
भूप उवाच-
कथ-री तू *कथरी सरिस, क्यूँ मानस में फ़ैल ?
चौखाने चौसठ लखत, मन शतरंजी मैल ||
*नागफनी / बिछौना
बबलू उवाच-
हमरा-हुलके बाल मन, कौतुक बेतुक जोड़ |
माया-मुटरी दे हमें, भाग दुशाला ओढ़ ||

कुंडलिया
गर जिज्ञासा बाल की, होय कठिनतर काम ।
सदा बाल की खाल से, निकलें प्रश्न तमाम ।
निकलें प्रश्न तमाम, बने उत्तर कठपुतली ।
करे सुबह से शाम, जकड ले बोली तुतली |
है दर्शन आध्यात्म, समझ जो पाओ भाषा |
रविकर शाश्वत मोक्ष, मिटा दो गर जिज्ञासा ||

(2)
रविकर तन-मन डोलते, खोले हृदयागार |
स्वागत है गुरुवर सभी, प्रकट करूँ आभार |
प्रकट करूँ आभार, सार जीवन का पाया |
ओ बी ओ
ने आज, सत्य ही मान बढाया |
अरुण निगम
आभार, कराया परिचय बढ़कर |
शुचि सौरभ संसार, बहुत ही खुश है रविकर ||

13 comments:

  1. बहुत बढ़िया......

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  2. बहुत सुंदर
    beautiful pic

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  3. कुंडली
    बालक सोया था पड़ा, माँ-बापू से खीज |
    मेले में घूमा-फिरा, मिली नहीं पर चीज |
    मिली नहीं पर चीज, करे पुरकस नंगाई |
    नटखट नाच नचाय, नींद निसि निश्छल आई |
    हो कठपुतली नाच, मगन मन जागा गोया ।
    डोर कौतिकी खींच, करे खुश बालक सोया ||

    प्रथम कुंडली को तृतीय पुरस्कार
    यानी शुद्ध २५१/- का लाभ |

    Thanks-
    O B O

    आभारी हूँ आपका, हे आयोजक वृन्द |
    पुरस्कार भी पा गया, आया छंद पसंद |
    आया छंद पसंद , बधाई अरुण रजिंदर |
    खूब पाया आनन्द, मगन मन नाचे रविकर |
    पूरे जीवन काल, प्रतिष्ठित पहली बारी |
    पहला यह धन-लाभ, मातु शारद आभारी ||

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  4. कभी न जिज्ञासु दिखे अपना मोहन लाल ,
    मतिभ्रम में जीवे सदा ,जुग जुग जीवे लाल ,
    अरे भई अपना हीरा लाल .
    बढ़िया हैं , .भाई साहब अंदाज़ आपक़े .

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  5. बधाई । सुंदर प्रस्तुति ।

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  6. बढ़िया प्रस्तुति ।

    आभार ।।

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  7. दोहे और कुंडलियाँ श्रेष्ठ साहित्या का रसपान करवा विभोर करती हैं। बधाई रविकर जी !

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  8. रविकर जी.... प्रथम बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ...... आपकी रचनाएँ ताज़गी से भरपूर लगी .... विचारों का सुन्दर संयोजन!

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  9. बहुत ही बढ़िया रचना...

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  10. दोहे और कुंडलियों के रूप में सुंदर प्रस्तुति !!
    बधाई.... साभार !!

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