दशरथ-युग में ही हुआ, दुर्धुश भट-बलवान |
पंडित ज्ञानी जानिये, रावण बड़ा महान ||1|
बार - बार कैलाश पर, कर शीशों का दान |
छेड़ी वीणा से मधुर, सामवेद की तान ||2||
भण्डारी ने भक्त पर, कर दी कृपा अपार |
मिली शक्तियों ने किया, पैदा बड़े विकार ||3||
पाकर शिव-वरदान वो, पहुंचा ब्रह्मा पास |
श्रद्धा से की वन्दना, की पावन अरदास ||4||
ब्रह्मा ने परपौत्र को, दिए विकट वरदान |
ब्रह्मास्त्र भी सौंपते, अस्त्र-शस्त्र की शान ||5||
शस्त्र-शास्त्र का हो धनी, ताकत से भरपूर |
मांग अमरता का रहा, वर जब रावन क्रूर ||6||
ऐसा तो संभव नहीं, मन की गांठें खोल |
मृत्यु सभी की है अटल, परम-पिता के बोल ||7||
कौशल्या का शुभ लगन, हो दशरथ के साथ |
दिव्य-शक्तिशाली सुवन, काटेगा दस-माथ ||8||
रावण थर-थर कांपता, क्रोधित हुआ अपार |
प्राप्त अमरता करूँ मैं, कौशल्या को मार ||9||
बोली मंदोदरी सुन, नारी हत्या पाप |
झेलोगे कैसे भला, भर जीवन संताप ||10||
तब उसके कुछ राक्षस, पहुँचे सरयू तीर |
कौशल्या का अपहरण, करके शिथिल शरीर ||11||
बंद पेटिका में किया, देते जल में डाल |
राजा दशरथ देख के, इनके सकल बवाल ||12||
राक्षस-गण से जा भिड़े, चले तीर-तलवार |
हारे राक्षस भागते, कूदे नृप जलधार ||13||
आगे बहती पेटिका, पीछे भूपति वीर |
शब्द भेद से था पता, अन्दर एक शरीर ||14||
बहते बहते पेटिका, गंगा जी में जाय |
जख्मी दशरथ को इधर, रहा दर्द अकुलाय ||15||
रक्तस्राव था हो रहा, थककर होते चूर |
गिद्ध जटायू देखता, राजा जी मजबूर ||16||
अर्ध मूर्छित भूपती, घायल फूट शरीर |
औषधि से उपचार कर, रक्खा गंगा-तीर ||17||
दशरथ आये होश में, असर किया वो लेप |
गिद्धराज के सामने, कथा कही संक्षेप ||18||
कहा जटायू ने उठो, बैठो मुझपर आय |
पहुँचाउंगा शीघ्र ही, राजन उधर उड़ाय ||19||
बहुत दूर तक ढूँढ़ते, पहुँचे सागर पास |
पाय पेटिका खोलते, हुई बलवती आस ||20||
कौशल्या बेहोश थी, मद्धिम पड़ती साँस |
नारायण जपते दिखे, नारद जी आकाश ||21||
बड़े जतन करने पड़े, हुई तनिक चैतन्य |
सम्मुख प्रियजन पाय के, राजकुमारी धन्य ||22||
नारद विधिवत कर रहे, सब वैवाहिक रीत |
दशरथ को ऐसे मिली, कौशल्या मनमीत ||23||
नव-दम्पति को ले उड़े, गिद्धराज खुश होंय |
नारद जी चलते बने, सुन्दर कड़ी पिरोय ||24||
अवधपुरी सुन्दर सजी, आये कोशलराज |
दोहराए फिर से गए, सब वैवाहिक काज ||25||
पूरी कथा का ड्राफ्ट-
देवों की कर तप असुर,प्राप्त करें वरदान
ReplyDeleteउसी शक्ति से त्रस्त हो,मांगें सुरगण त्राण
बेहद रोचक और कथात्मक गेयता सांगीतिकता से संसिक्त है यह रचना .सामूहिक वाचन योग्य .बधाई आपके इस समर्पित लेखन को .
ReplyDeleteकितनी नई (पहले ना जानी हुई ) बातें पता चल रही हैं आपकी कथा से । दशरथ कौशल्या विवाह ऐसे हुआ था ......
ReplyDeleteबहुत सुंदर जा रही है कथा और गेय भी है ।
एक जगह गलती से श्रध्दा की जगह श्रृध्दा टाइप हो गया है ।
आभार |
Deleteसंशोधन कर दिया है ||
JIS PRAKAR URMILA KE UDDAT CHARITRA KO MATHILI SHARAN GUPTA NE PRADAKSHINA KE MADHAYAM SE PRASTUT KAR ALOKIT KIYA USHI TARAH
ReplyDeleteRAVIKAR NE SHANTA KE CHARITRA KO AALOKIT KIYA HAI|| SADHUVAD |
आभार कमलेश जी |
Deleteआप पहली बार हमारे ब्लॉग पर आये |
महाकवि मैथिली शरण गुप्त जी को सादर नमन |
आपने बहुत बड़ी बात कह दी |
मैं तो अभी ठीक से कवि भी नहीं बन पाया |
आपका स्नेह -
आभार ||
इस अछूते विषय को आप महाकाव्य के रूप में लिखिए!
ReplyDeleteमुझे प्रसन्नता होगी!
आभार....!
अवधपुरी सुन्दर सजी, आये कोशलराज |
ReplyDeleteदोहराए फिर से गए, सब वैवाहिक काज ||25||वाह क्या बात है .बढ़िया छायांकन . .कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
बृहस्पतिवार, 21 जून 2012
सेहत के लिए उपयोगी फ़ूड कोम्बिनेशन
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सुन्दर कथा
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