20 June, 2012

भगवान् राम की सहोदरा (बहन) : भगवती शांता परम-4

सर्ग-1

अथ - शांता 

भाग-1

भाग-2

भाग-3

भाग-4

रावण, कौशल्या और दशरथ  

दशरथ-युग में ही हुआ, दुर्धुश भट-बलवान |
पंडित ज्ञानी जानिये, रावण  बड़ा महान ||1|

बार - बार कैलाश पर,  कर शीशों का दान |
छेड़ी  वीणा  से  मधुर, सामवेद  की  तान ||2||
 
भण्डारी ने भक्त पर, कर दी कृपा अपार |
मिली शक्तियों ने किया,  पैदा बड़े विकार ||3||

पाकर शिव-वरदान वो, पहुंचा ब्रह्मा पास |
श्रद्धा से की वन्दना, की पावन अरदास ||4||

ब्रह्मा ने परपौत्र को, दिए विकट वरदान |
ब्रह्मास्त्र भी सौंपते, अस्त्र-शस्त्र की शान ||5||

शस्त्र-शास्त्र का हो धनी, ताकत से भरपूर |
मांग अमरता का रहा, वर जब रावन क्रूर ||6||

ऐसा तो संभव नहीं, मन की गांठें खोल |
मृत्यु सभी की है अटल, परम-पिता के बोल ||7||

कौशल्या का शुभ लगन, हो दशरथ के साथ |
दिव्य-शक्तिशाली सुवन,  काटेगा दस-माथ ||8||

रावण थर-थर कांपता, क्रोधित हुआ अपार |
प्राप्त अमरता करूँ मैं, कौशल्या को मार ||9||

बोली मंदोदरी सुन, नारी हत्या पाप |
झेलोगे कैसे भला,  भर जीवन संताप ||10||

तब  उसके  कुछ  राक्षस,  पहुँचे  सरयू तीर | 
कौशल्या का अपहरण, करके शिथिल शरीर ||11||

बंद पेटिका में किया, देते जल में डाल |
राजा दशरथ देख के, इनके सकल बवाल ||12||

राक्षस-गण से जा भिड़े, चले तीर-तलवार |
 हारे राक्षस भागते,  कूदे नृप जलधार ||13||

आगे बहती पेटिका, पीछे भूपति वीर |
शब्द भेद से था पता, अन्दर एक शरीर ||14||

बहते बहते पेटिका, गंगा जी में जाय |
जख्मी दशरथ को इधर, रहा दर्द अकुलाय ||15||

रक्तस्राव था हो रहा, थककर होते चूर |
गिद्ध जटायू देखता, राजा  जी  मजबूर  ||16||
http://ecologyadventure2.edublogs.org/files/2011/04/turkey-vulture-sc5xey.jpg
अर्ध मूर्छित भूपती, घायल फूट शरीर |
औषधि से उपचार कर, रक्खा गंगा-तीर ||17||

दशरथ आये होश में, असर किया वो लेप |
गिद्धराज के सामने, कथा कही संक्षेप ||18||

कहा जटायू ने उठो, बैठो मुझपर आय |
पहुँचाउंगा शीघ्र ही, राजन उधर उड़ाय ||19||

बहुत दूर तक ढूँढ़ते, पहुँचे सागर पास |
पाय पेटिका खोलते, हुई बलवती आस ||20||

कौशल्या बेहोश थी, मद्धिम पड़ती साँस |
नारायण जपते दिखे, नारद जी आकाश ||21||
बड़े जतन करने पड़े, हुई तनिक चैतन्य |
सम्मुख प्रियजन पाय के, राजकुमारी धन्य ||22||

नारद विधिवत कर रहे, सब वैवाहिक रीत |
दशरथ को ऐसे मिली, कौशल्या मनमीत ||23||
नव-दम्पति को ले उड़े,  गिद्धराज खुश होंय |
नारद जी चलते बने, सुन्दर कड़ी पिरोय ||24||
jaimala
अवधपुरी सुन्दर सजी, आये कोशलराज |
दोहराए फिर से गए, सब वैवाहिक काज ||25||

9 comments:

  1. देवों की कर तप असुर,प्राप्त करें वरदान
    उसी शक्ति से त्रस्त हो,मांगें सुरगण त्राण

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  2. बेहद रोचक और कथात्मक गेयता सांगीतिकता से संसिक्त है यह रचना .सामूहिक वाचन योग्य .बधाई आपके इस समर्पित लेखन को .

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  3. कितनी नई (पहले ना जानी हुई ) बातें पता चल रही हैं आपकी कथा से । दशरथ कौशल्या विवाह ऐसे हुआ था ......
    बहुत सुंदर जा रही है कथा और गेय भी है ।
    एक जगह गलती से श्रध्दा की जगह श्रृध्दा टाइप हो गया है ।

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    1. आभार |
      संशोधन कर दिया है ||

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  4. JIS PRAKAR URMILA KE UDDAT CHARITRA KO MATHILI SHARAN GUPTA NE PRADAKSHINA KE MADHAYAM SE PRASTUT KAR ALOKIT KIYA USHI TARAH
    RAVIKAR NE SHANTA KE CHARITRA KO AALOKIT KIYA HAI|| SADHUVAD |

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    1. आभार कमलेश जी |
      आप पहली बार हमारे ब्लॉग पर आये |
      महाकवि मैथिली शरण गुप्त जी को सादर नमन |
      आपने बहुत बड़ी बात कह दी |
      मैं तो अभी ठीक से कवि भी नहीं बन पाया |
      आपका स्नेह -
      आभार ||

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  5. इस अछूते विषय को आप महाकाव्य के रूप में लिखिए!
    मुझे प्रसन्नता होगी!
    आभार....!

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  6. अवधपुरी सुन्दर सजी, आये कोशलराज |
    दोहराए फिर से गए, सब वैवाहिक काज ||25||वाह क्या बात है .बढ़िया छायांकन . .कृपया यहाँ भी पधारें -


    ram ram bhai
    बृहस्पतिवार, 21 जून 2012
    सेहत के लिए उपयोगी फ़ूड कोम्बिनेशन
    सेहत के लिए उपयोगी फ़ूड कोम्बिनेशन

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  7. सुन्दर कथा

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