सर्ग-1
क्रियाकर्म होता रहा, तेरह दिन का शोक |
अथ - शांता
भाग-1
भाग-2
भाग-3
कुंडली
दुःख की घड़ियाँ सब गिनें, घड़ी - घड़ी सरकाय ।
धीरज हिम्मत बुद्धि बल, भागे तनु विसराय ।
भागे तनु विसराय, अश्रु दिन-रात डुबोते ।
धीरज हिम्मत बुद्धि बल, भागे तनु विसराय ।
भागे तनु विसराय, अश्रु दिन-रात डुबोते ।
रविकर मन बहलाय, स्वयं को यूँ ना खोते ।
समय-चक्र गतिमान, घूम लाये दिन बढ़िया ।
मान ईश का खेल, गिनों कुछ दुःख की घड़ियाँ ।।
क्रियाकर्म होता रहा, तेरह दिन का शोक |
आसमान शिशु ताकता, खाली महल बिलोक ||13||
आंसू बहते अनवरत, गला गया था बैठ |
राज भवन में थी सदा, अरुंधती की पैठ ||14|
पत्नी पूज्य वशिष्ठ की, सादर उन्हें प्रणाम |
विकट समय में पालती, माता सम अविराम ||15||
नंदिनी की माँ कामधेनु
महामंत्री थे सुमंत, गुरू बुलावें पास |
लालन-पालन की करें, कुशल व्यवस्था ख़ास ||16||
महागुरू मरुधन्व के, आश्रम में तत्काल |
गुरु-आज्ञा से ले गए, व्याकुल दशरथ बाल ||17||
जहाँ नंदिनी पालती, बाला-बाल तमाम |
दुग्ध पिलाती प्रेम से, भ्रातृ-भाव पैगाम ||18||
कामधेनु की कृपा से, होती इच्छा पूर |
देवलोक की नंदिनी, थी आश्रम की नूर ||19||
दक्षिण कोशल सरिस था, उत्तर कोशल राज |
सूर्यवंश के ही उधर, थे भूपति महराज ||20||
राजा अज की मित्रता, का उनको था गर्व |
दुर्घटना से अति-दुखी, राजा-रानी सर्व ||21||
अवधपुरी आने लगे, ज्यादा कोसलराज |
राज-काज बिधिवत चले, करती जनता नाज ||22||
धीरे-धीरे बीतता, दुःख से बोझिल काल |
राजकुंवर बढ़ते चले, बीत गया वह साल ||23||
दूध नंदिनी का पिया, अन्प्राशन की बेर |
आश्रम से वापस हुए, फैला महल उजेर ||24||
ठुमुक-ठुमुक कर भागते, छोड़-छाड़ पकवान |
दूध नंदिनी का पियें, आता रोज विहान ||25||
उत्तर कोशल झूमता, राजकुमारी पाय |
पिताश्री भूपति बने, फूले नहीं समाय ||26||
पुत्री को लेकर करें, अवध पुरी की सैर |
राजा-रानी नियम से, लेने आते खैर ||27||
नामकरण था हो चुका, धरते गुण अनुसार |
दशरथ कौशल्या कहे, यह अद्भुत-ससार ||28||
कुछ वर्षों के बाद ही, फिर से राजकुमार |
विधिवत शिक्षा के लिए, गए गुरू-आगार ||29||
अच्छे योद्धा बन गए, महाकुशल बलवान|
दसो दिशा रथ हांकले, बने अवध की शान ||30||
शब्द-भेद संधान से, गुरु ने किया अजेय |
अवधपुरी उन्नत रहे, बना एक ही ध्येय || 31||
राजतिलक विधिवत हुआ, आये कोशल-राज |
राजकुमारी साथ मे, हर्षित सकल समाज ||32||
राजकुमारी साथ मे, हर्षित सकल समाज ||32||
बचपन का वो खेलना, आया फिर से याद |
देखा देखी ही हुई, खिंची रेख मरजाद ||33||
पूरी कथा का ड्राफ्ट-
बहुत ही सुन्दर सार तत्व समोए है यह प्रस्तुति .
ReplyDeleteभक्तिदर्शन से परिपूर्ण इस रचना के लिए बधाई...
ReplyDelete...सुन्दर कथा-प्रसंग !
ReplyDeleteदशरथ जी का बचपन उनका युवा होना विवाह सारे प्रसंग शब्दों में ढाल दिये ।
ReplyDeleteबेहतरीन !
ReplyDeleteबहुत ही अनुपम भावों से ओत-प्रोत उत्कृष्ट प्रस्तुति ...आभार
ReplyDeleteमनमोहक पोस्ट,सार्थक पोस्ट आपका आभार.
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