18 June, 2012

भगवान् राम की सहोदरा (बहन) : भगवती शांता परम-3

सर्ग-1

अथ - शांता 

भाग-1

भाग-2

भाग-3


कुंडली  
दुःख की घड़ियाँ सब गिनें, घड़ी - घड़ी  सरकाय ।
धीरज हिम्मत बुद्धि बल, भागे तनु विसराय ।
भागे तनु विसराय, अश्रु दिन-रात डुबोते ।
रविकर मन बहलाय, स्वयं को यूँ ना खोते ।
समय-चक्र गतिमान, घूम लाये दिन बढ़िया ।
मान ईश का खेल, गिनों कुछ दुःख की घड़ियाँ ।।

क्रियाकर्म  होता  रहा, तेरह दिन का शोक |
आसमान शिशु ताकता, खाली महल बिलोक ||13||  

आंसू बहते अनवरत, गला गया था बैठ |
राज भवन में थी सदा, अरुंधती की पैठ ||14|

पत्नी पूज्य वशिष्ठ की, सादर उन्हें प्रणाम |
 विकट समय में पालती, माता सम अविराम ||15||
File:Batu Caves Kamadhenu.jpg 
नंदिनी की माँ कामधेनु 
 महामंत्री थे सुमंत, गुरू बुलावें पास |
लालन-पालन की करें, कुशल व्यवस्था ख़ास ||16||

महागुरू मरुधन्व के, आश्रम में तत्काल |
 गुरु-आज्ञा से ले गए, व्याकुल दशरथ बाल ||17||

जहाँ नंदिनी पालती, बाला-बाल तमाम |
दुग्ध पिलाती प्रेम से, भ्रातृ-भाव पैगाम ||18||

 कामधेनु की कृपा से, होती इच्छा पूर |
देवलोक की नंदिनी, थी आश्रम की नूर ||19||
 
दक्षिण कोशल सरिस था, उत्तर कोशल राज |
सूर्यवंश के ही उधर, थे भूपति महराज ||20||

राजा अज की मित्रता, का उनको था गर्व |
 दुर्घटना से अति-दुखी, राजा-रानी सर्व ||21||

अवधपुरी आने लगे, ज्यादा कोसलराज |
राज-काज बिधिवत चले, करती जनता नाज ||22||

धीरे-धीरे बीतता, दुःख से बोझिल काल |
राजकुंवर बढ़ते चले, बीत गया वह साल ||23||

दूध नंदिनी का पिया, अन्प्राशन की बेर |
आश्रम से वापस हुए, फैला महल उजेर ||24||

ठुमुक-ठुमुक कर भागते, छोड़-छाड़ पकवान |
दूध नंदिनी का पियें, आता रोज विहान ||25||

उत्तर कोशल झूमता, राजकुमारी पाय |
पिताश्री भूपति बने, फूले नहीं समाय ||26||

पुत्री को लेकर करें, अवध पुरी की सैर |
राजा-रानी नियम से, लेने आते खैर ||27||

नामकरण था हो चुका,  धरते गुण अनुसार |
दशरथ कौशल्या कहे, यह अद्भुत-ससार ||28||

कुछ वर्षों के बाद ही, फिर से राजकुमार |
विधिवत शिक्षा के लिए, गए गुरू-आगार ||29||

अच्छे योद्धा बन गए, महाकुशल बलवान|
दसो दिशा रथ हांकले, बने अवध की शान ||30||

शब्द-भेद संधान से, गुरु ने किया अजेय |
अवधपुरी उन्नत रहे, बना एक ही ध्येय || 31||
 
राजतिलक विधिवत हुआ, आये कोशल-राज |
राजकुमारी साथ मे, हर्षित सकल समाज ||32||

बचपन का वो खेलना, आया फिर से याद |
देखा देखी ही हुई, खिंची रेख मरजाद ||33||

7 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर सार तत्व समोए है यह प्रस्तुति .

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  2. भक्तिदर्शन से परिपूर्ण इस रचना के लिए बधाई...

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  3. ...सुन्दर कथा-प्रसंग !

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  4. दशरथ जी का बचपन उनका युवा होना विवाह सारे प्रसंग शब्दों में ढाल दिये ।

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  5. बहुत ही अनुपम भावों से ओत-प्रोत उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति ...आभार

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  6. मनमोहक पोस्ट,सार्थक पोस्ट आपका आभार.

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