"ओबीओ चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता" अंक-१६
कुंडली
सकल लुनाई ईंट घर , दीमक चटा किंवाड़ ।
घर टपके टपके ससुर, गए दुर्दशा ताड़ ।
गए दुर्दशा ताड़, बांस का झूला डोला ।
डोला वापस जाय, ससुर दो बातें बोला ।
करवा ले घर ठीक, काम कुछ पकड़ जवाईं ।
पर काढ़े वर खीस, घूरता सकल लुनाई ।।
सकल = समस्त // शक्ल
लुनाई = ईंट में लोना लगना // लावण्य
कुंडली
इत पीपल उत प्रीत पल, इधर बाँस उत रास ।
इत पटरे पर जिन्दगी, पट रे इक ठो ख़ास ।
पट रे इक ठो ख़ास, आँख में रंगीनी है ।
सुन्दरता का दास, चैन दिल का छीनी है ।
प्रभु दे डोला एक, बढ़े हरियाली प्रतिपल ।
डोला मारूँ रोज, कसम से आ इत पीपल ।।
डोला = झूले में पेंग मारना // दुल्हन विदा करना- कुंडलीरंग-विरंगे पट पहर, दूर शहर की हूर |
किये साज-सज्जा सकल, महज तीन लंगूर |
महज तीन लंगूर, पहर दो झट पट बीता |
झूल चुकी भरपूर, नहीं आया मनमीता |
ये सावन की घास, लगा के रखी अड़ंगे |
हरा हरा चहुँ ओर, दिखें न रंग-विरंगे ||
वाह वाह !
ReplyDeleteक्या कहने!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रविकर जी..
ReplyDeleteसादर
अनु
bahut hi sundar chhand aur alankaro ka prayog !
ReplyDeleteवाह, पहला वाला जोरदार ।
ReplyDeleteRang-Virang Yatn latta,Dubar Dulhaniyaa Dur |
ReplyDeleteSaj Saaj Sajaa Sakal, Saghan Surang Sindur ||
Saghan Surang Sindur, Sakhi Sajan Sang Sudur |
Daar Daar Do Dore Daar, Jhur Chuki Bharpur ||
खट्टे-मीठे रसभरे, होते हैं अंगूर।
ReplyDeleteराजनीति में आ गये, अब तो बस लंगूर।।
साँप तो नहीं है
ReplyDeleteपर कुंडली गजब
की बनाता है
पहेली हो गया है
क्या आपको इस
पहेली का सही
उत्तर आता है ?
बहुत बधाइयाँ आदरणीय रविकर जी...
ReplyDeleteतीनों ही कुंडलियाँ सुंदर ...
ReplyDeleteसादर !