18 September, 2012

झाड़ू लगे सहर्ष, भ्रूण जिन्दा बच पाया-रविकर

 


(शक्ति) 
पहचाने नौ कन्यका, करे समस्या-पूर्ति ।
दुर्गा चंडी रोहिणी, कल्याणी त्रिमूर्ति ।
कल्याणी त्रिमूर्ति, सुभद्रा सजग कुमारी ।
शाम्भवी संभाव्य, कालिका की अब बारी ।
लम्बी झाड़ू हाथ,  लगाए अकल ठिकाने  ।
असुर ससुर हत्यार, दुष्ट मानव घबराने ।।

 (दोहे)
काँव काँव काकी करे, काकचेष्टा *काकु ।
करे कर्म कन्या कठिन, किस्मत कुंद कड़ाकु ।।
*दीनता का वाक्य 

आठ आठ आंसू बहे, रोया बुक्का फाड़ ।
बोझिल बापू चल बसा, भूल पुरानी ताड़ ।।

हुई विमाता बाम तो, करती बिटिया काम ।
शुल्क नहीं शाला जमा, कट जाता है नाम ।।

रविकर बचिया फूल सी, खेली "झाड़ू-फूल" ।
झेले "झाड़ू-नारियल",  झाड़े करकट धूल ।।
 (फूल-झाड़ू -घर के अन्दर प्रयुक्त की जाती है । नारियल झाड़ू बाहर की सफाई के लिए।)
 
 बढ़नी कूचा सोहनी, कहें खरहरा लोग ।
झाड़ू झटपट झाड़ दे, यत्र-तत्र  उपयोग ।।

सोनी *सह न सोहती, बड़-सोहनी अजीब ।
**दंड *सहन करना पड़े, झाड़ू मार नसीब ।।
*यमक  
**श्लेष 


(कुंडलियां) 
 दीखे *झाड़ू गगन में,  पुच्छल रहा कहाय ।
 इक *झाड़ू सोनी लिए, उछल उछल छल जाय ।
उछल उछल छल जाय, भाग्य पर झाड़ू *फेरे ।
*फेरे का सब फेर, विमाता आँख तरेरे ।
सत्साहस सद्कर्म, पाठ जीवन के सीखे ।
पाए बिटिया लक्ष्य,  अभी मुश्किल में दीखे ।।
* फेरना /  शादी के फेरे 



 (दोहे)
सींक-सिलाई कन्यका, सींक सिलाई बाँध ।
गठबंधन हो दंड से, कूड़ा-करकट साँध ।

जब पानी पोखर-हरा, कहाँ खरहरा शुद्ध ।
नलके से धो ले इसे, फिर होगा न रुद्ध ।

डेढ़ हाथ की तू सखी, छुई मुई सी  बेल ।
पांच हाथ का दंड यह, कैसे लेती झेल ?? 

अब्बू-हार बिसार के, दब्बू-हार बुहार ।
वे तो पड़े बुखार में, खाए मैया खार ।। 

कपड़ा कंघी झाड़ मत, पथ का कूड़ा झाड़ ।
टूटा तेरे जन्मते, कुल पर बड़ा पहाड़ ।।

 झाड़ू थामे हाथ दो, करते दो दो हाथ ।
हाथ धो चुकी पाठ से, सफा करे कुल पाथ ।
 
  सड़ा गला सा गटर जग, कन्या रहे सचेत ।
खुल न जाए खलु हटकि, खलु डाले ना  रेत ।

करते मटियामेट शठ, नीति नियंता नोच ।
जांचे कन्या भ्रूण खलु, मारे नि:संकोच ।।
सींक-सिलाई =1. दुबली-पतली / झाड़ू की सींक 
पोखर = तालाब 
खरहरा = झाड़ू 
रुद्ध = रुकावट 
कपड़ा कंघी झाड़=पहनना -संवरना  
झाड़  = सफाई करना  
खलु = दुष्ट 
रेत = बालू -मिटटी से तात्पर्य 
रेत =  रेतना / काटना

  (कुंडलियां) 
 (भैया)
ताकें आहत औरतें, होती व्यथित निराश ।
छुपा रहे मुंह मर्द सब, दर्द गर्द एहसास ।
दर्द गर्द एहसास,  कुहांसे से घबराए ।
पिता पड़ा बीमार, खरहरा पूत थमाये ।
 मातु-दुलारा पूत, भेज दी बिटिया नाके ।
बहन बहारे *बगर, बहारें भैया ताके ।।
*बड़े भवन के सामने का स्थान 

(इलाज)
 मेंहदी वाले हाथ में, लम्बी झाड़ू थाम ।
हाथ बटा के बाप का, कन्या दे पैगाम ।
कन्या दे पैगाम, पड़े वे ज्वर में माँदे ।
करें सफाई कर्म, *मेट छुट्टियाँ कहाँ दे ।
वे दैनिक मजदूर, गृहस्थी सदा संभाले ।
हाथ डाक्टर-फीस,  हाथ लें मेंहदी वाले ।

(दहेज़)

आठ वर्ष की बालिका, मने बालिका वर्ष ।

पैरों में चप्पल चपल, झाड़ू लगे सहर्ष ।

झाड़ू लगे सहर्ष, भ्रूण जिन्दा बच पाया ।

यही नारि उत्कर्ष, मरत बापू समझाया ।

कर ले जमा दहेज़, जमा कर गर्द फर्श की ।

तेज बदलता दौर, जिन्दगी आठ वर्ष की ।।

(छल)
भोली भाली भली भव, भाग्य भरोसा भूल ।
लम्बी झाड़ू हाथ में, बनता कर्म उसूल ।
बनता कर्म उसूल, तूल न देना भाई ।
ढूँढ समस्या मूल, जीतती क्यूँ  अधमाई ।
खाना पीना मौज, मार दुनिया को गोली ।
मद में नर मशगूल, छले हर सूरत भोली ।। 

( मजबूरी )
कैसा रेल पड़ाव है, कैसा कटु ठहराव ।
'कै' सा डकरे सामने, कूड़ा गर्द जमाव ।
कूड़ा गर्द जमाव, बिगड़ता स्वास्थ्य निरीक्षक ।
कल करवाऊं साफ़, बताया आय अधीक्षक ।
कालू धमकी पाय, जब्त हो जाए पैसा ।
बिटिया देता भेज, करे क्या रोगी ऐसा ?? 

(कानून)
इंस्पेक्टर-हलका कहाँ, हलका है हलकान ।
नहीं उतरता हलक से, संविधान अपमान ।
संविधान अपमान, तान कर लाओ बन्दा ।
है उल्लंघन घोर, डाल कानूनी फंदा ।
यह पढने की उम्र, बना ले भावी बेहतर ।
अपराधी पर केस, ठोंक देता इंस्पेक्टर ।।
(सम-सामायिक)
काटे पटके जला दे, कंस छले मातृत्व |
पटक सिलिंडर सातवाँ, सुनत गगन वक्तृत्व |
सुनत गगन वक्तृत्व, आठवाँ खुदरा आया |
जान बचाकर भाग, पाप का घड़ा भराया |
कन्या झाड़ू-मार, बोझ अपनों का बांटे |
कमा रुपैया चार, जिन्दगी अपनी काटे || 

(सम-सामायिक)
 दाल हमारी न गली, सात सिलिंडर शेष ।
ख़तम कोयला की कथा, दे बिटिया सन्देश ।
दे बिटिया सन्देश, भगा हटिया वो भूखा ।
पर खुदरा पर मार, पड़ा था पूरा सूखा ।
वालमार्ट ना जाय, बड़ी विपदा लाचारी ।
कन्या रही बुहार, गले ना दाल हमारी ।।



।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ( सगण यानि सलगा X 8 )
दुर्मिल सवैया
अब रेल करे नित खेल सखे  सब ठेल रहे सब  झेल रहे  ।
सब ईंधन खाय चुके भरपेट, कटे बिजुली नहिं तेल रहे ।
अति भीड़ बढ़ी जब रेल खड़ी, झटके भट रेलमपेल रहे ।
हर ओर बढ़ा कचड़ा कितना, *बढ़नी पर देख अकेल रहे ।
*झाड़ू  

बिटिया बढ़नी बड़वार लिए, चुपचाप चलावत हाथ सखे ।
अपने घर का सब भार लिए, नित आय बुहारत रेल लखे ।
सपने कब का हठ भूल गए, जब बाप बतावत रोग दिखे ।
*नमवा अपना हर रोज लिखे, पर काम सदैव प्रधान रखे ।।
*नाम 



 कुंडलियाँ 
हतप्रभ महिलायें खड़ी, ताके पूरा *औध ।
चूड़ी पायल हैं नहीं, बिन बाली की पौध ।
बिन बाली की पौध, नहीं कुम्हलाने पावे ।
जो भी जिम्मेदार, मदरसा इसे पठावे ।
करे 'मदर' सा प्यार, नहीं दिल और दुखाएं ।
बढ़ा मदद को हाथ, अरी  हतप्रभ महिलायें  ।।
*अवध, सीतापुर 
  
उत्तर मिलता है कभी, कभी अलाय बलाय ।
 प्रश्नों का अब क्या कहें, खड़े होंय मुंह बाय ।
 खड़े होंय  मुंह बाय, नहीं मन मोहन प्यारे ।
सब प्रश्नों पर मौन, चलें वैशाखी धारे ।
वैशाखी की धूम,  लुत्फ़ लेता है रविकर ।
यूँ न प्रश्न उछाल, समय पर मिलते उत्तर ।। 


 (दोहे)

पैरों में चप्पल पड़ी, तन पर कपडे शेष ।
 झाड़ू देकर जी रही, है ना विकसित देश ।।

   घंटी बजती रेल की, यात्री भागे भूल ।
     निश्चय ही आपात में, भूलें लोग उसूल ।।

महत्त्वपूर्ण है दान से, बहुतै खनिज खदान ।
खुदरा होता ख़त्म तो, करें कहाँ से दान ??

नहीं मारता भ्रूण में, भूल गया दस्तूर ।
बड़ा शराबी है मगर, नहीं दुष्ट ना क्रूर ।।

कपड़ा-लत्ता झाड़ के,  कहाँ घूमने जाय ।
भरे पड़े हैवान हैं,  झाड रही पथ आय ।।

दुहिता करती है जमा, जो दहेज़ दरकार ।
इसी शर्त पर जी रही, वरना देते मार ।।

जीवमातृका  वन्दना, माता  के  सम पाल |
करे जीवमंदिर सुगढ़, पोसे सदा संभाल ||
http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/6/61/Stone_sculpt_NMND_-20.JPG 
शिव और जीवमातृका
धनदा  नन्दा   मंगला,   मातु   कुमारी  रूप |
बिमला पद्मा वला सी, महिमा अमिट-अनूप ||
https://lh3.googleusercontent.com/-ks78KCkMJR4/Tj_QMkR5FTI/AAAAAAAAAPI/PFy_h6xRHYY/bhrun-hatya_417408824.jpg 
भ्रूण-हत्या
कोई तो रक्षा करो, माताओं से  एक |
भ्रूणध्नी माता-पिता,  देते मुझको फेंक ||
http://aditikailash.jagranjunction.com/files/2010/06/bhrun-hatya.jpg 
भ्रूण-हत्या 
कुन्ती   तारा   द्रौपदी,  लेशमात्र   न   रंच |
आहिल्या-मन्दोदरी , मिटती कन्या-पन्च |
http://www.barodaart.com/Oleographs%20Mythology/PanchKanya-M(1).jpg 
पन्च-कन्या
सातों  माता  भी  नहीं, बचा  सकी  गर  पाँच |
रविकर  महिमा  पर  पड़े,  दैया  दुर्धर्ष  आँच |

2 comments:

  1. अछि मालूमात देती हुई पोस्ट है.

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  2. कन्या के हाथ में झाडू थमाई देत
    बेटे के हाथ देत दूध का गिलसवा ।

    जब अपनी ही मां ये भेद भाव करती है तो विमाता का तो क्या कहें ।

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