नाबालिग की पार्टी, मने वहाँ पर जश्न ।
जमा जन्म-तिथि देखकर, फँसने का क्या प्रश्न ।
फँसने का क्या प्रश्न, चलो मस्ती करते हैं ।
है सरकारी छूट, नपुंसक ही डरते हैं ।
पड़ो एकश: टूट, फटाफट हो जा फारिग ।
चार दिनों के बाद, रहें ना हम नाबालिग ।।
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लाठी हत्या कर चुकी, चुकी छुरे की धार |
कट्टा-पिस्टल गन धरो, बम भी हैं बेकार |
बम भी हैं बेकार, नया एक अस्त्र जोड़िये |
सरेआम कर क़त्ल, देह निर्वस्त्र छोड़िए |
नाबालिग ले ढूँढ़, होय बढ़िया कद-काठी |
मरवा दे कुल साँप, नहीं टूटेगी लाठी ||
कट्टा-पिस्टल गन धरो, बम भी हैं बेकार |
बम भी हैं बेकार, नया एक अस्त्र जोड़िये |
सरेआम कर क़त्ल, देह निर्वस्त्र छोड़िए |
नाबालिग ले ढूँढ़, होय बढ़िया कद-काठी |
मरवा दे कुल साँप, नहीं टूटेगी लाठी ||
शैतानों तानों नहीं, कामी-कलुषित देह ।
तानों से भी डर मुए, कर नफरत ना नेह ।
कर नफरत ना नेह, नहीं संदेह बकाया ।
बहुत बकाया देश, किन्तु बिल लेकर आया ।
छेड़-छाड़ अपमान, रेप हत्या मर-दानों ।
सजा हुई है फिक्स, मिले फाँसी शैतानों ।।
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बहुत खूब है सरजी .
ReplyDeleteबढिया, बहुत बढिया
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ReplyDeleteबिलकुल इत्तिफाक रखता हूँ सर आपकी सोच से। नाबालिको को भी ऐसे घोर अपराध में कोई रियायत नहीं मिलनी चाहिए। इन् हत्यारो ने न सिर्फ दामिनी की हत्या की है इन्होने मर्द जाति को शर्मसार किया है, मानवता की हत्या की है। इन् बुजदिलों को जीने का कोई अधिकार नहीं है।
ReplyDeleteशब्दों में बड़े सुन्दर से पिरोया है इस अभिव्यक्ति को सर आपने। इस लेखनी के लिए आपको धन्यवाद और बधाई।।
नरेन्द्र गुप्ता
नाबालिग ऐसी हरतें करते हैं क्या और करते हैं तो सज़ा भी बालिगों जैसी पायें।
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