"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-23
मिट्टी सोखे नियत जल, रौंधे रोज कुम्हार |
चढ़ा चाक पर नित्य ही, दे सुडौल आकार | दे सुडौल आकार, धूप में उसे सुखा दे | पावक गगन समीर, बड़ा मजबूत बना दे | सह सकती कृति ठेस, किन्तु गुम सिट्टी-पिट्टी || टुकड़े टुकड़े अंश, पञ्च तत्व मिट्टी मिट्टी || |
नई व्यवस्था दृढ़ दिखी, होय कलेजा चाक |
करे चाक-चौबंद जब, कैसे लेता ताक | कैसे लेता ताक, ताक में लेकिन हरदम | लख सालों की धाक, देह का घटता दमखम | सब कुम्हार का दोष, शिथिल से अस्थि-आस्था | मिटटी के प्रतिकूल, चाक की नई व्यवस्था || |
भगदड़ दुनिया में दिखे, समय चाक चल तेज |
कुम्भकार की हड़बड़ी, कृति अनगढ़ दे भेज | कृति अनगढ़ दे भेज, बराबर नहीं अंगुलियाँ | दिल दिमाग में भेद, मसलते नाजुक कलियाँ | ठीक करा ले चाक, हटा मिटटी की गड़बड़ | जल नभ पावक वायु, मचा ना पावें भगदड़ || |
ठीक करा ले चाक, हटा मिटटी की गड़बड़ |
ReplyDeleteजल नभ पावक वायु, मचा ना पावें भगदड़ ||
बहुत खूब सरजी !क्या कहने हैं सृजन के चाक पर भी किताब पर भी .
Meaningful & Nice Presentation. Like it.
ReplyDeleteआप जैसे लोगों की वजह से हिंदी काव्य जिन्दा रहेगा, वरना आजकल के अधिकांश कवि कविता के नाम पर क्या लिखते हैं, पता नहीं, ना रस, ना रंग, ना लय, ना गठन. आपको बहुत बहुत साधुवाद.
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