रहे "मुखर-जी" सदा ही, नहीं रहे मन मौन ।
आतंकी फांसी चढ़े, होय दुष्टता *दौन ।
होय दुष्टता *दौन, फटाफट करे फैसले ।
तभी सकेंगे रोक, सदन पर होते हमले ।
कायरता की देन, दिखा सत्ता खुदगर्जी ।
बना "सॉफ्ट-स्टेट", सॉफ्ट ना रहे "मुखर्जी"।।
*दमन
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बेटा -लेटा सुन रहा, जी टी वी पर न्यूज |
नैतिक शिक्षा से हुआ, दिल-दिमाग कुल फ्यूज | दिल-दिमाग कुल फ्यूज, दाँत हाथी के देखे | लम्बी लम्बी बात, किताबी इनके लेखे | चॉपर टू-जी तोप, कोयला सभी समेटा | यह चर्चा तकरार, समझ नहिं पाए बेटा || |
थोथा थापा द्वार पर, करता बन्टाधार |
पंजे के इस छाप से, कैसा अब उद्धार | कैसा अब उद्धार, भांजती *थापी सत्ता | थोक-पीट सामंत, उतारे कपडा-लत्ता | रहे कब्र यह खोद, निभा अब ना बहिनापा | दर दरवाजा छोड़, लगा ना थोथा थापा || |
बहुत सुन्दर शब्द दिए है आपने अपने मन के
ReplyDeleteमेरी नई रचना
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
वाह...!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
लाजवाब!
बहुत बढ़िया ....
ReplyDeleteक्या खूब कहा आपने वहा वहा बहुत सुंदर !! क्या शब्द दिए है आपकी उम्दा प्रस्तुती
ReplyDeleteमेरी नई रचना
प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
बहुत ही सुन्दर!
ReplyDelete.सार्थक पोस्ट .बद्दुवायें ये हैं उस माँ की खोयी है जिसने दामिनी , आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते
ReplyDeletebahut khoob
ReplyDeleteplease visit my blog kaynatanusha.blogspot.in
सही कहा है, आजकल कपडे लत्ते ही उतर रहे हैं.
ReplyDeleteरामराम.
उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
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