खैनी से हो कैन्सर, बिगड़ जाय सर फेस |
सफ़र फेसबुक का करे, खुद ऐसी ही रेस |
खुद ऐसी ही रेस, फ़ैल जाती बीमारी |
देख नवल सन्देश, हुआ गुट आज हजारी |
समझदार की मौत, नजर पर रखते पैनी |
माने बीबी सौत, बनी गैया मरखैनी ||
सफ़र फेसबुक का करे, खुद ऐसी ही रेस |
खुद ऐसी ही रेस, फ़ैल जाती बीमारी |
देख नवल सन्देश, हुआ गुट आज हजारी |
समझदार की मौत, नजर पर रखते पैनी |
माने बीबी सौत, बनी गैया मरखैनी ||
होली हमजोली हलफ, वेलेंटाइन पर्व ।
मस्त मदन मन मारता, मिल मौका गन्धर्व ।
मिल मौका गन्धर्व, नहीं कोई डे ऐसा ।
ना कोई त्यौहार, जगत में इसके जैसा ।
ना पूजा ना पाठ, और ना अक्षत रोली।
एक अकेला पर्व, पास दिखती है होली ।।
|
बेटा -लेटा सुन रहा, जी टी वी पर न्यूज |
नैतिक शिक्षा से हुआ, दिल-दिमाग कुल फ्यूज |
दिल-दिमाग कुल फ्यूज, दाँत हाथी के देखे |
लम्बी लम्बी बात, किताबी इनके लेखे |
चॉपर टू-जी तोप, कोयला सभी समेटा |
यह चर्चा तकरार, समझ नहिं पाए बेटा ||
नैतिक शिक्षा से हुआ, दिल-दिमाग कुल फ्यूज |
दिल-दिमाग कुल फ्यूज, दाँत हाथी के देखे |
लम्बी लम्बी बात, किताबी इनके लेखे |
चॉपर टू-जी तोप, कोयला सभी समेटा |
यह चर्चा तकरार, समझ नहिं पाए बेटा ||
मद्धिम रविकर तेज से , हो संध्या बेचैन ।
शर्मा जाती लालिमा, बैन नैन पा सैन ।
बैन नैन पा सैन, पुकारे प्रियतम अपना ।
सर पर चढ़ती रैन, चूर कर देती सपना ।
खग कलरव गोधूलि, बढ़ा देता है पश्चिम ।
है कुदरत प्रतिकूल, मेटता संध्या मद्धिम ।।
|
सार्थक अभिव्यक्ति,आभार.
ReplyDeleteअत्यंत सुन्दर गुरूजी | बहुत बेहतरीन |
ReplyDeleteउम्दा !!
ReplyDeleteबडी मारक रचना है,शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत प्यारा लिखते हैं आप ...
ReplyDeleteआभार भाई जी !
सन्नाट!!
ReplyDeleteउम्दा बहुत सुन्दर
ReplyDeleteमेरी नई रचना
प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ