इड़ा पिंगला साध लें, मिले सुषुम्ना गेह ।
बरस त्रिवेणी में रहा, सुधा समाहित मेह ।..
बरस त्रिवेणी में रहा, सुधा समाहित मेह ।..
सुधा समाहित मेह, गरुण से कुम्भ छलकता ।
संगम दे सद्ज्ञान , बुद्धि में भरे प्रखरता ।
रविकर शिव-सत्संग, मगन-मन सुने इंगला ।
कर नहान तप दान, मिले वर इड़ा-पिंगला।
इंगला=पृथ्वी / पार्वती / स्वर्ग
इड़ा-पिंगला=सरस्वती-लक्ष्मी (विद्या-धन )
इड़ा-पिंगला=सरस्वती-लक्ष्मी (विद्या-धन )
"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-24
(१)
दुर्मिल सवैया
इबराहिम इंगन इल्म इहाँ इजहार मुहब्बत का करता ।
पयगम्बर का वह नाम लिए कुल धर्मन में इकता भरता ।
कह कुम्भ विशुद्ध जियारत हज्ज नहीं फतवावन से डरता ।
इनसान इमान इकंठ इतो इत कर्मन ते जल से तरता ॥
इंगन=हृदय का भाव
इकंठ=इकठ्ठा
(२)
सुंदरी सवैया
हरिद्वार, प्रयाग, उजैन मने शुभ नासिक कुम्भ मुहूरत आये ।
जय गंग तरंग सरस्वति माँ यमुना सरि संगम पावन भाये ।
मन पुष्प लिए इक दोन सजे, जल बीच खड़े तब धूप जलाये ।
इसलाम सनातन धर्म रँगे दुइ हाथन से जल बीच तिराए ॥
धर्म के मर्म को समझाती शानदार कुंडलियाँ !!
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति श्रेष्ठ लेखन आपकी टिप्पणियाँ हमें भी प्रेरित करतीं हैं .
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन कुंडलियाँ आदरणीय,सादर नमन.
ReplyDeleteवाह गुरूवर!
ReplyDeleteहर विधा में माहिर है आप कविवर !
ReplyDeleteतत्वपूर्ण ,अर्थपूर्ण,
ReplyDeleteसद्भाव एवं सुरुचिपूर्ण!
हर घटना पर आपकी कु़ंडली रूप टिप्पणी सटीक होती है ।
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