इड़ा पिंगला संग मे, मिले सुषुम्ना देह ।
बरस त्रिवेणी में रही, सुधा समाहित मेह ।
सुधा समाहित मेह, गरुण से कुम्भ छलकता ।
संगम दे सद्ज्ञान , बुद्धि में भरे प्रखरता ।
रविकर शिव-सत्संग, मगन-मन सुने इंगला ।
कर नहान तप दान, मिले वर इड़ा-पिंगला।
इंगला=पृथ्वी / पार्वती / स्वर्ग
इड़ा-पिंगला=सरस्वती-लक्ष्मी (विद्या-धन )
बरस त्रिवेणी में रहा, सुधा समाहित मेह ।..
सुधा समाहित मेह, गरुण से कुम्भ छलकता ।
संगम दे सद्ज्ञान , बुद्धि में भरे प्रखरता ।
रविकर शिव-सत्संग, मगन-मन सुने इंगला ।
कर नहान तप दान, मिले वर इड़ा-पिंगला।
इंगला=पृथ्वी / पार्वती / स्वर्ग
इड़ा-पिंगला=सरस्वती-लक्ष्मी (विद्या-धन )
कुण्डलिया
इड़ा पिंगला सुषुम्ना, संगम सी शुभ-देह ।
प्रभु चरणों में आत्मा, पाए शाश्वत नेह ।
पाए शाश्वत नेह, गरुण से अमृत छलका ।
संगम से गम दूर, तीर्थ मनु बुद्धि-बल का ।
कर मनुवा सत्संग, मिलें मदनारि-मंगला ।
कर पूजन तप दान, दर्श दें इड़ा-पिंगला ।
इड़ा पिंगला सुषुम्ना=तीन नाड़ियाँ
इड़ा-पिंगला= माँ सरस्वती-माँ लक्ष्मी
मदनारि मंगला = शिव-पार्वती
इड़ा पिंगला साध लें, मिले सुषुम्ना गेह ।बरस त्रिवेणी में रहा, सुधा समाहित मेह ।..
सुधा समाहित मेह, गरुण से कुम्भ छलकता ।
संगम दे सद्ज्ञान , बुद्धि में भरे प्रखरता ।
रविकर शिव-सत्संग, मगन-मन सुने इंगला ।
कर नहान तप दान, मिले वर इड़ा-पिंगला।
वाह क्या गजब
ReplyDeleteबधाई
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.शुभकामनायें.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति,आभार.
ReplyDeleteसंग हँसें रोंयें सदा, नहीं मिलन की रीत ।
प्रभु मेरी तुमसे हुई, ज्यों नैनन की प्रीत ।।
भाव और भाषा के माधुर्य से ओतप्रोत कुण्डलियां...बहुत सुंदर....
ReplyDeleteभाषा ,भाव ,शैली की दृष्टी से अभिभूत करने वाली एक
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति ,सादर
इस युग में शास्त्रीय ज्ञान को जीवित रखने के लिये आभार !
ReplyDeleteहोली की अग्रिम वधाई !!
हठ-योग के सार्थक प्रतीक सुन्दर अर्थ दे रहे हैं !
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