इड़ा पिंगला सुषुम्ना=तीन नाड़ियाँ | |
साहित्यकार इब्राहीम जी कुम्भ में |
कह कुम्भ विशुद्ध जियारत हज्ज नहीं फतवावन से डरता -
(१)
दुर्मिल सवैया
इबराहिम इंगन इल्म इहाँ इजहार मुहब्बत का करता ।
पयगम्बर का वह नाम लिए कुल धर्मन में इकता भरता ।
कह कुम्भ विशुद्ध जियारत हज्ज नहीं फतवावन से डरता ।
इनसान इमान इकंठ इतो इत कर्मन ते जल से तरता ॥
इंगन=हृदय का भाव
इकंठ=इकठ्ठा
(२)
सुंदरी सवैया
हरिद्वार, प्रयाग, उजैन मने शुभ नासिक कुम्भ मुहूरत आये ।
जय गंग तरंग सरस्वति माँ यमुना सरि संगम पावन भाये ।
मन पुष्प लिए इक दोन सजे, जल बीच खड़े तब धूप जलाये ।
इसलाम सनातन धर्म रँगे दुइ हाथन से जल बीच तिराए ॥
Badhiya !
ReplyDeleteकर मनुवा सत्संग, मिलें मदनारि-मंगला ।
ReplyDelete'शब्द-अन्वेषण' सराहनीय है !
कर मनुवा सत्संग, मिलें मदनारि-मंगला ।
ReplyDeleteसराहनीय शब्द-अन्वेषण !