17 March, 2013

संगम से गम दूर, तीर्थ मनु बुद्धि-बल का-




कुण्डलिया
इड़ा पिंगला सुषुम्ना, संगम सी शुभ-देह ।

प्रभु चरणों में आत्मा, पाए शाश्वत नेह ।

पाए शाश्वत नेह, गरुण से अमृत छलका ।

संगम से गम दूर, तीर्थ मनु बुद्धि-बल का ।

कर मनुवा सत्संग, मिलें मदनारि-मंगला ।

कर पूजन तप दान, दर्श दें इड़ा-पिंगला ।
इड़ा पिंगला सुषुम्ना=तीन नाड़ियाँ

इड़ा-पिंगला= माँ सरस्वती-माँ लक्ष्मी

मदनारि मंगला = शिव-पार्वती
साहित्यकार इब्राहीम जी कुम्भ में

कह कुम्भ विशुद्ध जियारत हज्ज नहीं फतवावन से डरता -


(१)
दुर्मिल सवैया
इबराहिम इंगन इल्म इहाँ इजहार मुहब्बत का करता ।

पयगम्बर का वह नाम लिए कुल धर्मन में इकता भरता ।

कह कुम्भ विशुद्ध जियारत हज्ज नहीं फतवावन से डरता ।

इनसान इमान इकंठ इतो इत कर्मन ते जल से तरता ॥
इंगन=हृदय  का भाव
इकंठ=इकठ्ठा
(२)
सुंदरी सवैया
हरिद्वार, प्रयाग, उजैन मने शुभ  नासिक कुम्भ मुहूरत आये ।

जय गंग तरंग सरस्वति माँ यमुना सरि संगम पावन भाये ।

मन पुष्प लिए इक दोन सजे, जल बीच खड़े तब धूप जलाये ।

इसलाम सनातन धर्म रँगे दुइ हाथन से जल बीच तिराए ॥



3 comments:

  1. कर मनुवा सत्संग, मिलें मदनारि-मंगला ।
    'शब्द-अन्वेषण' सराहनीय है !

    ReplyDelete
  2. कर मनुवा सत्संग, मिलें मदनारि-मंगला ।
    सराहनीय शब्द-अन्वेषण !

    ReplyDelete