"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-24 | |
साहित्यकार इब्राहीम जी कुम्भ में |
(१)
दुर्मिल सवैया
इबराहिम इंगन इल्म इहाँ इजहार मुहब्बत का करता ।
पयगम्बर का वह नाम लिए कुल धर्मन में इकता भरता ।
कह कुम्भ विशुद्ध जियारत हज्ज नहीं फतवावन से डरता ।
इनसान इमान इकंठ इतो इत कर्मन ते जल से तरता ॥
इंगन=हृदय का भाव
इकंठ=इकठ्ठा
(२)
सुंदरी सवैया
हरिद्वार, प्रयाग, उजैन मने शुभ नासिक कुम्भ मुहूरत आये ।
जय गंग तरंग सरस्वति माँ यमुना सरि संगम पावन भाये ।
मन पुष्प लिए इक दोन सजे, जल बीच खड़े तब धूप जलाये ।
इसलाम सनातन धर्म रँगे दुइ हाथन से जल बीच तिराए ॥
वाह ... मधुर संस्कृति मिलन है ... कुम्भ दर्शन ऐसा ही है ...
ReplyDeleteसुन्दर संयोजन है !!
ReplyDeleteआभार !!
वाह!
ReplyDeleteआपकी यह प्रविष्टि कल दिनांक 18-03-2013 को सोमवारीय चर्चा : चर्चामंच-1187 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बहुत सुद्नर आभार आपने अपने अंतर मन भाव को शब्दों में ढाल दिया
ReplyDeleteआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
एक शाम तो उधार दो
आप भी मेरे ब्लाग का अनुसरण करे
ऐतराज़ का कारण केवल अज्ञान है. अब अज्ञान से मुक्ति का समय आ चूका है.
ReplyDeleteबहुत उम्दा बात कही है आपने.