(1)
बेला पापड ढेर ठो , माफ़ी हुई क़ुबूल ।
बेला पापड ढेर ठो , माफ़ी हुई क़ुबूल ।
पा बेला अनुकूल फिर, लगा झोंकने धूल ।
लगा झोंकने धूल, भूलता पाप पुराना ।
भूला धर्म उसूल, शुरू फिर शूल उगाना ।
शान्ति व्यवस्था भंग, देख खच्चर का मेला।
अलबेला यह देश, गधों को मिला *तबेला ।
*घुडसाल
(2)
माया के जंजाल की, बड़ी मुलायम काट |
लेकिन वह अखिलेश भी, करता बन्दरबांट |
करता बन्दरबांट, धकेले भर भर कुप्पा |
जहाँ खड़ी हो खाट, बैठ जाता वह चुप्पा |
यमुना कुंडा ख़ास, कुम्भ भरदम भटकाया |
खोवे होश-हवास, खड़ी मुस्काये माया-
शान्ति व्यवस्था भंग, देख खच्चर का मेला।
ReplyDeleteअलबेला यह देश, गधों को मिला *तबेला ।
:) :)
बहुत ही सही फरमाया गुरुदेव अखिलेश जी ऐसे ही कर रहें है.
ReplyDeleteमाया के जंजाल की, बड़ी मुलायम काट |
ReplyDeleteलेकिन वह अखिलेश भी, करता बन्दरबांट |
करता बन्दरबांट, धकेले भर भर कुप्पा |
जहाँ खड़ी हो खाट, बैठ जाता वह चुप्पा |
यमुना कुंडा ख़ास, कुम्भ भरदम भटकाया |
खोवे होश-हवास, खड़ी मुस्काये माया-
क्या बात है ,बहुत खूब सर जी .
sateek ...
ReplyDeleteइस देश में बंदरबांट ही तो चल रही है, बहुत सटीक कटाक्ष किया आपने.
ReplyDeleteरामराम.
माया के जंजाल की, बड़ी मुलायम काट |
ReplyDeleteलेकिन वह अखिलेश भी, करता बन्दरबांट |
करता बन्दरबांट, धकेले भर भर कुप्पा |
जहाँ खड़ी हो खाट, बैठ जाता वह चुप्पा |
यमुना कुंडा ख़ास, कुम्भ भरदम भटकाया |
खोवे होश-हवास, खड़ी मुस्काये माया-
बहुत खूब सर जी .
आपकी यह रचना दिनांक 21.06.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/
ReplyDeleteपर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।
बहुत खूब!
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