इस रोने से क्या भला, नहीं समय पर चेत |
बादल फटने की क्रिया, हुवे हजारों खेत |
बादल फटने की क्रिया, हुवे हजारों खेत |
हुवे हजारों खेत, रेत मलबे में लाशें |
दुबक गई सरकार, बहाने बड़े तलाशें |
रविकर पक्का धूर्त, इसे दो रोने धोने |
बड़ा खुलासा आज, किया क्यूँ इस "इसरो" ने ||
बेहद सशक्त भावाभिव्यक्ति .....सहज अनुभूत अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteक्या बात है, बहुत बढिया
ReplyDeleteवाह....
ReplyDeleteअप्रतिम रचना
सादर
वाह बहुत खूब
ReplyDeleteसहज पर अर्थपूर्ण
सादर
वाह रविकर जी, सुंदर रचना । सामयिक भी सटीक भी ।
ReplyDeleteइस रोने से क्या भला, नहीं समय पर चेत |
ReplyDeleteबादल फटने की क्रिया, हुवे हजारों खेत |
सुन्दर,आभार.
आपकी यह उत्कृष्ट रचना कल दिनांक 05.07.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है। कृपया देखें और अपने सुझाव दें।
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