वृष्टि सुरेश करे जमके चमके बिजली घनघोर घटा ।
ग्वालिन ग्वाल बहे पशु अन्न निहारत कृष्ण करेज फटा
गोबरधन्य उठा कन-अंगुलि देत दिखाय अजीब छटा ।
आज सँभाल रहे धरती मिल सज्जन नौ-जन हाथ बटा
दूषित नीर जमीन हवा शिव सा विष मध्य गले भरती |
नीलक टीक लगावत मानव रोष तभी धरती धरती |
प्राण अनेकन जीवन के तब पुन्य धरा झट से हरती |
आज सँभाल रहे धरती मरती जनता फिर क्या करती ||
दुर्मिल सवैया
शुभ रूप धरे धरती मइया दस हाथ उठाय सँभाल रहे ।
जब वीर बड़े बलवान बड़े नृप आय रहे भ्रम पाल रहे ।
जग जीत लिया खुब प्रीत किया पर अंतिम काल-कवाल रहे ।
जब सुन्दर दृश्य दिखा धरती निश्चय ही खुशहाल रहे ॥
Dua karo ye dharti maa hamesha khushhaal rahe!
ReplyDeleteगोवर्धनधारी की जरूरत है आज कि सम्हाले धरती को । सुंदर सवैये ।
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